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________________ Jain Educatio नय बहुमुवयरिओऽविह विहुरे थेवंपि कुणइ साहारं । सयणजणो मोत्तूणं एकं जिणदेसिय धम्मं ॥ ४ ॥ इ भणिए नियदुच्चरियहणुप्पण्णगाढसंतावो । काऊण पायपडणं जहाऽऽगयं पडिगओ राया ॥ ५ ॥ विस्सभूई सम्ममहिगयसाहुधम्मो गुरुचरणसुस्सूसापरो दूरुज्झियसुहिसयणसंथवो जीवियमरणनिरवेक्खो पंचिंदियदित्तसत्तुविजयपरो बहुं कालं गुरुकुलं पज्जुवासेइ । अण्णया य सम्मं समहिगयमुत्तत्थो विसेसेण विधियमणपरिकम्मो जोगोत्ति कलिऊण गुरुणाऽणुण्णाओं समाणो एगलविहारित्तणं पडिवज्जिऊण छट्टुमाइ निदुरं तवोकम्मं कुणमाणो सम्मं परीसहचमूं अहियासेजमाणो वीयरागोव्व गामनगरागराइसु अममाएंतो पइक्खणं वीरासणुक्कुडयासणाई कुणमाणो पइदिणं सूराभिमुहं आयाविंतो नियजीवियन्भहियं पाणिगणं रक्खितो बायाली सदो| सविसुद्धविरसाहारगहणेण संजमसरीरमणुपालेंतो गामाणुगामं विहरेंतो समागओ सुरिंदपुरिविग्भमाए महुराए नय ए, ठिओ थिपसुपंडगविवज्जिए उक्किद्वतवनिरयमुणिजण संगए एगंतदेसे, तहिं च निवसंतो एगया परमसंवेग| गयमाणसो नियजीवियनिय मणत्थं चिंतिउमारद्धो । जहा ational rastras सुहाई जिओ दुहाई, दूरेण मोतुमभिवंछइ तुच्छबुद्धी । एवं न जाणइ जहा न कहिंपि धम्मसंबंधसिद्धिविरहेण भवंति ताई ॥ १ ॥ भोगे समीes करेइ रई कहासु, देसित्थिपत्थिवसुभोयण संगयासु । For Private & Personal Use Only vjainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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