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________________ तवग्गो, कुमारोऽवि विनायवइयरो फुप्फकरंडगुजाणं मोत्तूण एइत्ति, एयं च उभयमवि सुपडिविहियं भवइ, एव-13 ६ मायन्निऊण अन्भुवगयं राइणा, उठ्ठिया मंतिणो, साहिओ देवीए एगंतट्टियाए एस वइयरो, सहरिसाए कयं तीए भोयणं, पमुक्को कोवाडंवरो, बीयदिवसे य लिहियकवडलेहहत्था उलियजंघा गाढपरिस्समकिलंता उवटाविया मंतीहिं अपुच्चपुरिसा, नीया य रायसमीवे, खित्ता तेहिं लेहा, वाइया सयमेव राइणा, विनाओ तदत्थो, कवडकोवप्फडाडोवपुज्वं च भणिया नियपुरिसा-रेरे पुरिसा! ताडेह सन्नाहभेरिं, नयरदूरे पइट्ठह गुडुरं आयदृह दिव्वा-14 उहाइं समप्पह जयहत्थिं जेण करेमि पत्थाणंति वुत्ते तहत्ति निवत्तियं पुरिसेहिं, इओ य भेरीसद्दसवणओ संखुद्धं सामंतमंडलं पगुणीकया मयगलंतगंडत्थला कुंजरघडा, संबूढा सुहडसत्था, चउद्दिसिपि पयट्टाई तुरयघटाई, मिलिया 2 सेणाहिवइणो, किं बहुणा ?-हलहलियं सयलं भूमंडलं, ठिओ पत्थाणंमि णरिंदो, एत्यंतरे अविनायपरमत्थो पत्था-16 प्राणट्टियमुक्लब्भ नराहिवं निग्गओ पुप्फकरंडगुज्जाणाओ विस्सभूई कुमारो समागओ रायसमीवे निवडिओ चलणेसु है। पुट्ठो वइयरं, साहिउमारद्धो य नरिंदेण, जहा-बच्छ! अत्थि पच्चंतसीमालो पुरिससीहो नाम मंडलाहिवो, सो य पुवं पणयभावं आणावत्तित्तणं पडिवजिऊण य संपइ दरिसियतिव्यवियारो निहयसीमागामजणो अम्ह मंडलमइक्कमइ, ता पुत्त! महंतो एस मे परिभवो। अविय सपियपियामहपमुहजियं महिं पेच्छिऊण हीरांति । कह सकलंक जीयं निरत्ययं संपइ वहामो ? ॥ ३९ ॥ Jain Education a l For Private & Personal Use Only D ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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