SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 679
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ROCESSARSA-AR ता गोअम! जं तुमए पुवं पुट्ठोम्हि कह भवम्मि जिया । पुणरुत्तमणंतदुहोहपीडिया परिभमंतित्ति ?, ॥ ४ ॥ तत्थेमं चिय नणु मूलकारणं जन्न सहरिसं विरई। सम्मत्तगुणसणाहं भणियविहाणेण गिण्हंति ॥५॥ एवं कहिए तित्थंकरण गिहिधम्मवित्थरे तुहो। पयवीढलीढसीसो पढमो सीसो जिणं थुणइ ॥६॥ जय तियलोयपियामह ! वम्महमाहप्पनिद्दलणधीर ! ललणासिंगारुब्भडकडक्खखेवेऽवि अक्खुब्भ!॥१॥ भवगत्तपडतजणोहसरण रणरहिय महिय तियसेहिं । नायकुलंवरपुन्निममयंक! जय जय निरायंक!॥२॥ एगेणवि जह तुमए पयत्थसत्था जए पवित्थरिया। तह अन्नतिथिएहिं न समत्थेहिवि मणागपि ॥३॥ तुह अत्थसारलेसं मन्ने रोरव तित्थिया घेत्तुं । जाया अनन्नमाहप्पगचिया नाणविभवेण ॥४॥ है। जं न हणिजइ दिणयरकरपसरपईवजोइरयणेहिं । चित्तम्भंतरलीणं तंपि तमं पहु! हयं तुमए ॥५॥ 2 असरिसं जयगुरुगुरुभत्तिपभावनिस्सरंतरोमंचो । इय थोऊण निविट्ठो सट्ठाणे गणहरवरिहो ॥६॥ एत्थंतरे दुवालसवयदेसणानिसामणसमुष्पन्नभववेरग्गेहि केहिवि पडिवन्ना देसविरई, अन्नेहिं उज्झियाई मिच्छत्तकायचाई, केहिवि गहिया सबविरई । इओ य सेणियनरिंदो थोवमेत्तंपि विरई काउमसमत्थो तित्थाहिवं पणमिऊण । भणिउमाढत्तो-भयवं! जो अचंतमहारंभो महापरिग्गहो सबहा विरइरहिओ सो कहं भवन्नवं नित्थरिस्सइ ?, जयगुरुणा भणियं-भो नरिंद ! सेणिय ! देसविरई वा सबविरई वा काउमपारयंतो सम्मत्ते निच्चलो होजा, एवं Jain Educat i onal For Private Personal Use Only O diainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy