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________________ SUMMEROACCOACACCOLO एमाइविविहसंसयसंकियचित्तो खणं विगमिऊणं । सम्मं वियाणणट्ठा ओहिण्णाणं पउंजेइ ॥ १८६ ॥ पारिवजपवन्नं अह देहं नियइ तं विगयजीयं । तेऽवि ससिस्से गंथत्थवाहिरे मुद्धबुद्धीए ॥ १८७ ॥ ताहे नियदंसणपक्खवायओ चत्तदेवकाययो । ओयरिओ आयासे सिस्साणं तत्थ(त)कहणा ॥१८॥ वरपंचवण्णमंडलमज्झगओऽदिस्समाणरूवो य । आसुरिपमुहे सिस्से भासइ संबोहिऊणेवं ॥१८९ ॥ • अवत्ताओ वत्तं पभवइ इचाइ तत्तसंदोहं । तो सद्वितंतगंथं तं सोचा आसुरी कुणइ ॥ १९० ॥ अन्वोच्छित्ती य तओ जाया सीसप्पसीसवग्गस्स । एवं सति वित्थरियं सवत्थ तिदंडिपासंडं ॥ १९१ ॥ कविलोऽवि हरिसियमणो ठाणाओ तो गओ सुरावासं । तत्थ य अणण्णसरिसे पंचविहे भुंजए भोए॥१९२/६ अह सो मिरिई आउयखयंमि चइऊण वंभलोगाओ। दूरदिसागयनेगमपणियाउलविवणिमग्गंमि ॥ १९३॥ परिसरदेसहियसाहुवग्गपारद्धधम्मकम्ममि । नीसेसगामतिलए कोलागे संनिवेसंमि ॥ १९४ ॥ जुम्मं । छक्कम्मनिरयचित्तो वेयत्यवियारकुसलबुद्धी य। जाओ जयपयडजसो नामेणं कोसिओ विष्पो ॥ १९५ ॥ सो विसयपसत्तमणो दविणजणकयविचित्तवावारोपाणवहपमुहगरुपावठाणनिरवेक्खचित्तो य॥ १९६ ॥ मिच्छत्तनिहयबुद्धी तिदंडिदिक्खं निसेविउं अंते । असीई उ पुबलक्खे सव्वाउं पालिऊण मओ ॥ १९७ ॥ Jain Educald a tional For Private & Personel Use Only jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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