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________________ ४९ महा० Jain Education I ता कीस गंभारीण धम्मनिरयाण पवरसाहूणं । चलणाइघट्टणेवि संपइ संतावमुच्हसि ? ॥ १८ ॥ सरयनिसायरधवले कुलंमि पडिवन्नमुज्झमाणस्स । किं सुंदर ! न कलंको होही आनंदकालंपि १ ॥ १९ ॥ कइवयदि सुहकजेण अजिऊणं पयंडपावभरं । किं कोइ भण सयन्नो अप्पाणं पाडइ भवोहे ? ॥ २० ॥ इय एवंविवयणेहिं भुवणदीवेण वीरनाहेण । पडिवोहिओ महप्पा मेहकुमारो सुनिवरिट्ठो ॥ २१ ॥ जाओ सुनिच्चलमणो तहकहवि जिनिंदभणियमग्गंमि । जह दुक्करतवनिरयाण साहूण णिदंसणं पत्तो ॥ २२ ॥ तस्ससहिं सोचा संवेगकरिं परेऽवि सुणिवसहा । सविसेसमप्पमत्ता पडिवन्ना संजमुज्जोगं ॥ २३ ॥ अह अण्णंम दिणंमी सोचा धम्मं जिणिंदमूलंमि । भववेरग्गमुत्रगओ रायसुओ नंदिसेणोऽवि ॥ २४ ॥ पज्जा डिवत्तिं कामणो सो य सेणियनरिंदें । जणणिं च बहुविहेहिं वयणेहिं पनवेऊण ॥ २५ ॥ जाव सुवर्णकपणो पासे चलिओ पवजिउं दिक्खं । ताव य सो भणिओ देवयाए गयणट्टियाए इमं ॥ २६ ॥ भो भो कुमार ! विरम पञ्चज्जागहणओ जओ अत्थि । अज्जवि तुह भोगफलं चारित्तावारगं कम्मं ॥ २७ ॥ थे कालं निवसतु स ता कीस ऊसुगो होसि ? । सलहिज्जंति न कज्जाई पुत्त ! अइरहसविहियाई ॥ २८ ॥ काले चिकीत बसाओ कजसाहगो होइ । समयाभावे सरसं न फलइ अचंतसितंपि ॥ २९ ॥ तत्तो कुमरेण भणियं देवि ! कीस तुममियं पयँपेसि ? । सयमेवपडिवनं कहमिव उज्झामि विरइमई ॥ ३० ॥ For Private & Personal Use Only elibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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