SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 564
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीगुणचंद एएण जा सा सा सत्ति संलत्तं ?, भगवया कहियं-महती कहा एसा, एगग्गचित्ता निसामेह | श्रीवीरसमहावीरच०|| अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे चंपानाम नयरी, तत्थेवेगो सुवण्णगारो इत्थीलोलो जं जं पवररूववई कन्नगं पेच्छइ तं । मवसरण ८प्रस्ताव तं पंच सुवण्णसयाणि दाऊण परिणेइ, एवं च तेण परिणयंतेण कालक्कमेण पंच सयाणि महिलियाणं पिडियाणि, या सा सा ॥२७२॥ एकेकाए य तिलगहारड्डहारनेउरपमुहाई आभरणाई दिन्नाई, जहिवसं च जाए समं भोगे भुंजइ तदिवसं सा सवालं- दाहरण. कारपरिग्गहं पहाणविलेवणाइ सिंगारं च करेइ, सेसकालं पुण उवसंतवेसेण अच्छइ, अण्णहा सुवण्णगारो निन्भ-13 च्छइ, न य ईसालुगत्तणेण सो निमेसमेत्तंपि गेहदुवारं मुंचइ, सयणाणवि नावगासं देइ, एवं वचंति वासरा, अन्नया य सो अणिच्छंतो महया किलेसेण नीओ मित्तेण भोयणदाणत्थं नियमंदिरे, चिरलद्धायगासाहि य चिंतियं तस्स गेहिणीहिंकिं अम्ह जीविएणं? किंवा मणिकणगभूसणेहिंपि? किं विभववित्थरेणवि बहुएण निरत्थएणिमिणा ॥१॥ जं न लभामो निचंपि विलसिउं नणु कयंततुलस्स । एयस्स पावपइणो दढमम्हे गोयरे पडिया ॥२॥ PI बहुकालाओ गेहं जाव विमोतुं गओ स अन्नत्थ । मणवंछियसोक्खेणं ताव वसामो खणं एकं ॥३॥ इय चिंतिऊण व्हाया सुरहिविलेवणविलित्तसवंगा। परिहियपवरदुगुल्ला आलिद्धासेसआभरणा ॥४॥ ॥ २७२॥ भालतलरइयकुरुला [तिलया ] सिंदूरारुणियपवरसीमंता । गंधुब्भडमियनाहीपंकलिहियगलपत्तलया ॥ ५॥ SAGAR Man Educatiot ional For Private Personal use only ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy