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________________ पवरमणिरयणरुइरं वंतरदेवहि सालमज्झमि । सिंहासगं ठविजइ सपायपीढं सुरमणिजं ॥६॥ तस्सोवरि विउद्या सक्को उम्मिल्लपल्लवसिरिलं । जिणदेहाउ दुवालसगुणियं कंकेलिपवरतरुं॥७॥ ईसाणसरिंदो निम्मवेइ लंबंतमोतियसरीयं । छणमयलंछणधवलं फलिहदंडं च छत्ततिगं ॥८॥ हेट्ठामुहठियविंटा रुटंतुद्दाममहुयरसणाहा । आजाणु कुसुमबुट्ठी निवडइ गवणाओ वरगंधा ॥९॥ सबरयणामयाइं विचित्तकररइयसकचावाइं । रेहंति तोरणाइं नववंदणमालकलियाई ॥१०॥ मंदरमहियमहोयहिरवगंभीराइं तियसनिवहेण । दिसि दिसि पहयाई चउबिहाइं तूराई दिवाई ॥११॥ पवण्य खीरोयहिमहल्लकल्लोलविन्भमेहि नहं । छाइजइ धयनिवहेहि वेजयंतीसएहिं च ॥१२॥ मयरंदुद्दामसहस्सपत्तकीलंतहंसमिहुणाओ। पडिगोउरं वराओ पोक्खरिणीओ य कीरति ॥ १३॥ मिच्छत्तसत्तुविक्खोभदक्खमक्खंडभाणुर्विवसमं । जंतूग य कमलोवरि ठाविजइ धम्मवरचकं ॥१४॥ देवच्छंदयपमुहं अन्नंपि जमेत्य होइ कायवं । वंतरसुरेहिं कीरइ पहिढहियएहिं तं सवं ॥ १५ ॥ इय नियनियअहिगाराणुरूवओ विरइयंमि ओसरणे । जिगरविभीयव निसा निन्नट्ठा तक्खणं चेव ॥ १६ ॥ है। एत्यंतरे सायरसुरखयरनमंसिजमाणो माणाइरित्तगुणरयणावासो वासवनिदंसिज्जमाणमग्गो मग्गाणुलग्गभव जणजणियपरितोसो तोसरोसपरिवजियगत्तो गत्तसमभवपइंतजणसमुद्धरणपरो परमकरुणरसनिववियजयजणदुहज -NCREGCREACHESHASTROCIRCR- Jain Educati onal For Private & Personel Use Only A jainelibrary.org 5
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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