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________________ RES numan EARCROSORRENCE बेहि अणुत्तरेहिं लाघवखंतिगुत्तिमुत्तिसञ्चसुचरिएहिं अप्पाणं भावमाणस्स सडछम्माससमहिगेसु दुवालससंवच्छरेसु । समइकंतेसु वइसाहसुद्धदसमीए सुवयाभिहाणंमि दिशूमि विजए मुहुत्ते हत्थुत्तरानक्खत्तंमि चंदेण जोगमुवागयंमि सुक्कज्झाणानलनिद्दड्डयणघायकम्मिंधणस्स पुहत्तवियक सवियारमेगत्तवियकमवियारं च झाइऊण उवरयस्स सुहमकिरियानिवाहि वोच्छिन्नकिरियमप्पडिवाइंच सुक्कज्झाणचरिमभेयद्गमसंपत्तस्स अणंतमणुत्तरं निवाघायं निरावरणं पडिपुन्नं सयललोयालोयपयासयं केवलवरनाणदंसणं समुप्पन्नंति ॥ तयणंतरं च दुकरतवचरणफलंमि केवलालोए । जाए सूरेणं पिव पयडिजइ तिहुअणं पहुणा ॥१॥ अह बत्तीस सुरिंदा तक्खणचलियासणा लहुं पत्ता। विरयंति समोसरण पायारतिएण परियरियं ॥२॥ सुविभत्तचारुगोउरपोक्खरिणीपबलधयवडाइन्नं । सिंहासणं च मणिकणयनियरनिम्मवियहरिचावं ॥३॥ ताहे तिलोयनाहो थुवंतो देवनरनरिंदेहि । सिंहासणे निसीयइ तित्थपणामं पकाऊण ॥ ४ ॥ जइविह एरिसनाणेण जिणवरो मुणइ जोग्गयारहियं । कप्पोत्ति तहवि साहइ खणमेत्तं धम्मपरमत्थं ॥५॥ इय निरुवकमविकमनिरकियभंतरारिविसरस्स । वीरस्स भुवणपहुणो चरिए सूरे व विप्फुरिए ॥६॥ संगमयाइपरीसहसहणऽजियनाणलाभसंबद्धो। संखेवेण समत्तो सत्तमओ एत्थ पत्थावो ॥७॥ इइ सिरिमहावीरचरिए परीसहसहणकेवलुवजणो सत्तमो पत्थावो ॥ Jain Educati o nal For Private & Personel Use Only M ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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