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________________ रत्नावलीपाशबन्धः श्रीगुणचंद|8|कोऽवि निच्छओ, पच्छावि सुलभो चेव मरणाभिलासो, तओ रयणावलीए सुणिऊण तीसे निसेहपरं वयणं कयं महावारचा मोणं, खणंतरेण य दिहिं से वंचिऊण परियणेण अमुणिजमाणा निग्गया आवासाओ, पविट्ठा दूरदेसपरिसंठियंमि ६ प्रस्तावः वणनिगुंजे, जोडियपाणिसंपुडा य भणिउं पवत्ता॥२११॥ भो काणणदेवीओ! वयणं मे सुणह मंदपुन्नाए । को अन्नो इह ठाणे ? साहिजइ जस्स नियकजं ॥१॥ एसाऽहं दुहहे विरूवलक्षणचएण निम्मविया । परिणयणुत्तरकालंपि जीए जाओ इमो विरहो ॥२॥ एत्तो तुज्झ समक्खं अत्ताणं तरुवरंमि लंबित्ता । मोएमि अजसकालुस्सकलुसिएणं किमेएण! ॥३॥ सिरिपुररायतणुब्भव! तुमंपि दूरडिओऽवि लक्खिज्जा । जह तीऍ वराईए मम विरहे उज्झिओ अप्पा ॥ ४ ॥ इय भणिऊण संजमिओ केसपासो निविडमापीडिया नियंसणगंठी उत्तरिलवत्थेण रइओ तरुसाहाए पासओ आबद्धो नियकंधराए, मुक्को अप्पा, एत्थंतरे सेजाए तमपेच्छमाणी अणुमग्गेण धाविया अंबधाई, पत्ता कम्मधम्मसंजोएणतं पएस, चंदजोण्हाए य लंबमाणादिद्वारयणावली, तओ हाहारवं कुणमाणी तक्कालिययं पडियारं काउमसमत्था लग्गा वाहरिउं-भो भो सुरविंतरखयरा! परित्तायह परित्तायह, इममि इत्थीरवणंमि देह पाणभिक्खं, छिन्नह पासगं, मा अंगीकरेह उवेहाजणियं पावकंति । इओ य कणगचूडो सुरसेणकुमारो य पत्ता तं पएसं, सुणिया एसा उग्घोसणा, तओ गयणाओ ओयरिऊण छिन्नो से पासओ संवाहियं अंगं, पुच्छिया य अणेहि-सुयणु! को ॥२११॥ Jain Education For Private & Personal use only R elibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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