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________________ श्रीगुणचंद इत्ति वाढं परितप्पइ मणो, कणयचूडेण भणियं-जइ एवं ता वचामो तत्थ, पडियन्नं कुमारेण, तओ विमाणमारु-| वैराग्यं महावीरच. हिऊण दोवि गंतुं पयहा। कुमारा६ प्रस्ताव न्वेषणाच | इओ य तं सेन्नं दुह्रतुरगावहरियं कुमारं सुचिरं अरन्ने पलोइऊण कहवि अपत्तवत्तं निराणदं निरुच्छाहं गयं ॥२१॥ 18/ सिरिपुरं नयरं, निवेइया नरवइस्स कुमारवत्ता, तओ राया अवहरियसवस्सो इव संतावमुबहतो परिचत्तपाणभो-| यणो चाउरंगिणीए सेणाए अणुगम्ममाणो अंतेउरेण दुस्सहदुक्खकंतहिययाए रयणावलीए य समेओ निग्गओ नयराओ कुमारनेसणनिमित्तं, पत्तो य कमेण तं चेव कायंबरीए मज्झदेसं, पेसिया कुमारावलोयणत्थं सवत्थ पुरिसा, समारद्धा य निरूविउ, अन्नया इओ तो परिममंतेहिं दिट्टो सो पुलिंदगो, पलोइयं च से अंगुलीए कुमा-18 रनामंकियं मुद्दारयणं, तं च दद्दूण जइ पुण अणेण विणासिओ होज कुमारोत्ति कुविकप्पकलुसियहियएहिं उव-14 णीओ सो नराहिवस्स, तेणावि अणाउलहियएण पुच्छिओ एसो-अहो मुद्ध! मह अवितहं साहेसु कत्तो एस मुद्दा-12 रयणलाभो ? कत्थ वा कुमारोत्ति भणिए सो पुलिंदगो अदिट्टपुवं हरिकरिरहभडुब्भडं रायलच्छि पेच्छिऊण जाय-13 ॥२१०॥ संखोभो अडविअडं खलंत क्खरं कुमारवत्तं कहिउमारद्धो, तओ राइणा भणियं-अरे अवरोप्परविरोहिणा वयणसंदब्भेण मुणिजइ जहा कुमारो अणेण विणासिओत्ति, कहमन्नहा मुद्दारयणलाभो हवेजा ?, न हि जीवंतस्स भुयगाहिवस्स फणारयणं केणा वि घेतुं पारिजइ ?, एवं ठिएवि पंचरत्तं जाव सुसंगोवियं करेह एयं, ण मुणिजइ कोऽवि SAMACIS-AIRMANCE In Educati 17 onal For Private Personal Use Only
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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