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________________ श्रीगुणचंद महावीरच. ५प्रस्ताव ॥१७१॥ प्रतिज्ञा. विद्यासिद्ध AA% CE R संदंतवाहफुरंतनयणो सायरमवलोइजमाणो चंदकंतापमुहेहिं अइंसणमुवगोत्ति । चक्खुपहमइक्कतेऽवि तंमि खणं विरहवेयणासुन्नत्तणमणुभविऊण भणियं गोभद्देण-अहो से वयणविन्नासो अहो पायपरिहारो अहो भीरुत्तणं अहो विणीयया अहो सुगुणजणसमुज्जमो अहो असरिसदक्खिणत्तणंति, चंदलेहाए भणियं-तुहाणुभावो खलु एसो, न हि नरिंदसामत्थमंतरेण भुयगफणाफलगमइकमिउमभिसकइ सालूरो, न तिक्खंकुसकरारोहगं विणा पहे पयट्टइ। मत्तदोघट्टोत्ति, एवं च विविहसंकहाहिं ठाऊण कइवय दिणे अन्नदियहे य भणियं गोभद्देण, जहा-बहूई दिणाई मम गिहनिग्गयस्स ता अणुजाणह मंगमणत्थं,न जाणिजइ कहंपि तुम्ह भाउज्जाया संपयमावण्णसत्ता निवसइत्ति, एवमायण्णिऊण चंदलेहाए पुणोवि कइवय वासराणि धरिऊण अन्नसमए य पभूयरयणदाणपुत्वगं सम्माणिऊण |विसजिओ गोभहो सट्ठाणं पत्तो कहाणगविसेसेणं निययगाम। __ अह जाब पिययमादसणूसुओ निययगेहाभिमुहं वचइ ताव दूराओ चिय दिटुं भग्गदुवारदेसं रेणुपडलसंछन्नं दरीपसुत्तसाणघुरघुरियघोरघोसभीसणं अणेगकोलबिलाउलं सुसाणं व भयावहं तं गिहं, तारिसं च दद्ण खुभियहियएण पुच्छिया सहेजिया, तीएवि चिरकालागयं दट्टण तं जायपणयाए आहूओ सगिहे, दावियं आसणं, कयं सोयणं, भणियं च-गोभइ ! करेसु ताव भोयणंति, तेणावि तहाविहगेहदंसणजायसरीरदाहेण आपुठ्ठा पुणोवि |एसा सघरवुत्तंतं, तीएऽवि अणिटुं भोयणावसाणे सीसइत्ति लोयवायं परिभावितीए भणियं-पियहरं गया तुह -CRORSCREARSA १७१॥ Jan Education For Private Personal use only
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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