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________________ तयणंतरं च कत्थवि एत्तियकालं परिभमिय इमिणा । दिबविमाणारूढा अहयं एसावि मह भइणी ॥ ८॥ श्रीगुणचंद विद्यासिद्धमहावीरच. आगिट्ठिसत्तिणा आणीयाओ संपइ पयंडदंडेण । सिरिपवयगमणहा गेहाओ नीहरंतीओ ॥९॥ ५प्रस्तावः। एत्तोऽणंतरमेवं जमेस वागरइ तं करेमोत्ति । बुज्झइ खंधेण हडी सचं चोरस्स बलियस्स ॥१०॥ एयमायन्निऊण गोभद्देण चिंतियं-अहो रक्खसाणंपि भेक्खसा अस्थि, जमेवंविहजोगिणीजणोवि एवं आणानि॥१६४॥ दाहसंमि वहाविजइ, अओ चिय भणिजइ-बहुरयणा वसुंधरा भगवई, एत्तोचिय वरगुणगणनिहिणोऽवि न गवमन्व ति सप्पुरिसा, चंदलेहाए भणियं-अहो महायस! एयं किर साहियवं, जइ एस विजासिद्धो एत्थ पत्थावे मम भणीचंदताए न बंभचेरभंगं करेंतो ता इमीए सयंपभा नाम महाविज्जा साहिया हुंता, मम पुण तुमए सीलखंडणं अकुणमाणेण तस्साहणविही अजवि पडिपुन्नो चेव चट्टइ, सत्तरत्तमेत्तेण य चिंतियत्थसंपत्ती भविस्सइ. ता महाणुभाव ! जं पुरा पुच्छियं तुमए जहा कहं मए जोइया सबकामुयलाभसिद्धीयत्ति तत्थ एस परमत्थो, गोभदेण भणियं-सुयणु ! किमत्थ भणियवं? पीडंतु गहा विहडंतु संपया पडउ दुक्खदंदोली । सयणावि होंतु विमुहा तहवि न मुंचामि सचरिये ॥१॥ १६४॥ नियजीवस्स खलस्सव जहिच्छचारेण दिन्नपसरस्स । दुक्खेण मामि! सम्मग्गठावणं जइजणो कुणइ ॥२॥ । चंदलेहाए भणियं-एवमेयं, किं वन्निजइ तुम्ह निम्मलगुणाणं जस्स एरिसं जिइंदियत्तणं? एवंविहो अज्जककरण-14 COCXANAS Jain Educati o nal For Private Personel Use Only R ainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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