SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्तावः ॥ ११४ ॥ Jain Education रूवो वियप्पो समुप्पण्णो, जहा - जप्पभिई एस गन्भो संभूओ तप्पभिई घणकणगाइरज्जविभवेणं अम्हे बहामो, ता जइया एस जाओ भविस्सइ तइया एयस्स इमं गुणनिष्फण्णं वद्धमाणोत्ति नामधेयं वयं करिस्सामोत्ति, एवंरुवाई मणोरहसयाइं परिकप्पयंति ॥ tional अह भगवं भुवणपहू नाणत्तयपरिगओ महाभागो । करुणापरेकचित्तो समुहविरत्तो महासत्तो ॥ १ ॥ चलण फंदणरूवं संहरिडं सव्यमंगवावारं । सेलेसिपवन्नो इव अणुकंपट्टा सजणणीए ॥ २ ॥ तह विवस गभे जह नियजणणीवि नो मुणइ सम्मं । तइलोक्कविम्हयकरो गरुयाणं कोऽवि वावारो ॥ ३॥ नवरं तिसलादेवी तहट्ठिए जिणवरे विचिंतेइ । किं गलिओ मम गन्भो ? उयाहु देवेहिं अवहरिओ ? ॥ ४ ॥ किं मज्झवि विडो ? किं वा केणावि थंभिओ होजा ? | अहवा निष्पुन्नाणं रयणं किं करयले वसई ? ॥ ५ ॥ as a far farओ एसो ता निच्छयं निए पाणे । नीसेस दुक्खलक्खेकभायणेऽचि परिचयामि ॥ ६ ॥ अझाव या करयलपल्हत्थिएण वयणेण । अचैतदुक्खवसया दूरुज्झियमंडणाभरणा ॥ ७ ॥ परिचत्तसमुल्लावा महियलकयरुक्खचक्खुविक्खेवा । दीहुस्सासनिवारियमुहसोरभमिलियभसलकुला ॥ ८ ॥ इय भूरिसोगसंभारतरलिया गलियकेसपासा य । हिययंतो रोवंती देवी जावऽच्छए ताव ॥ ९ ॥ सिद्धत्थरायभवपि तक्खणं विमणदुम्मणं जायं । उवसंतमुइंगरवं उवरयवरगीयनिग्घोसं ॥ १० ॥ For Private & Personal Use Only गर्भनिश्व लता. ॥ ११४ ॥ inelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy