SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ NAGA एएसिपि तहाविहआवयवसजायदुत्थचित्ताणं । ओसहदाणाईहिं समाहिभावं च जणमाणो ॥ १७ ॥ अक्खरपयगाहसिलोगमेत्तयं सबया अपुवसुयं । अहिगयसुत्तत्थोऽविहु सुयाणुरागेण पढमाणो ॥ १८॥ भत्तिं तह बहुमाणं तद्दिद्वत्थाण सम्मभावणयं । विहिगहणं चिय निचं सुयस्स सम्मं पयासितो ॥ १९ ॥ भवाण धम्मकहणेण पइदिणं पवयणुन्नई परमं । सियवायसाहणेण य कुणमाणो सुद्धचित्तेणं ॥ २० ॥ सो नंदणमुणिवसहो इय वीसइठाणगाई फासित्ता । तित्थयरनामगोत्तं कम्मं बंधेइ परमप्पा ॥ २१ ॥ अह पमायपरिहारपरायणो एगं वाससयसहस्सं समणपरियागं पाउणित्ता पजंतसमए य सम्ममालोइयनियदुचरियवग्गो समुचारियपंचमहवओ खामियसबसत्तसंताणो मासियसलेहणासंलिहियसरीरो पंचनमोकारपरायणो मरिऊण समाहीए समुप्पन्नो पाणयकप्पे पुप्फुत्तरवडिंसए विमाणे देवोत्ति ॥ ताहे सो सरभसमाविरेण नियपरियणेण परियरिओ। विलसइ तत्थ विमाणे अयराई वीसई जाव ॥१॥ आउयकम्मविगमे य तत्तो चविऊण इहेव जंबुद्दीवेदीवे भारहे खेत्ते माहणकुंडग्गामे सन्निवेसे सयलवेयविजावियक्ख|णस्स उसभदत्तस्स माहणस्स देवाणंदाए भारियाए गन्भे सो नंदणदेवजीवो मिरियभवकयकुलप्पसंसणदोससमुवजि| यनीयगोयकम्मसामत्थेणं आसाढसुद्धछट्ठीए हत्थुत्तरे नक्खत्ते पाउन्भूओ पुत्तत्तणेणंति, दिट्ठा य तीए रयणीए सुहपसुचाए गयवसहाइणो चउद्दस महासुमिणा, तओ अदिद्वपुब्धतहाविहसुविणोवलंभजायहरिसा गया उसहदत्तस्स RCACACACACA Jan Educa t ion For Private Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy