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________________ A श्रीगुणचंद पजंतं एत्तो जंपिएण जइ कामियाई सोक्खाई । भोत्तुं वंछह ता वीयरायवयणे समुज्जमह ॥ १०॥ सामन्तभ. महावीरच० इय संसारनिस्सारत्तणपरिकहणेण पडिबुद्धा वहवे पाणिणो । बीयदिवसे य समायन्नियसूरिसमागमणवुत्तंतो सम-18 द्रदेशना. ४प्रस्ताव: ग्गगयतुरयनरनियरपरियरिओ भारियासुयसंपओगपुच्छणकए समागओ नरविकमनराहियो, तओ वंदिऊण सूरिं ॥१०२॥ चिंतिउमाढत्तो-अहो एयस्स भुवणच्छरियभूयं रूवं विमुक्कामयबुट्ठी दिट्ठी सजलघणघोससुंदरो सरो नीसेसपसत्थल खणजुत्तं गत्तं पाणिगणकयरई भारई, तहा तमनिग्गहिओ चंदो तवंमि मंदा रुई दिणयरस्स । गिरिविहियाभिभयो सायरोऽवि को हुज एयसमो ? ॥१॥ 8 तं नथि जं न जाणइ भूगं भव्यं भविस्समवि वत्थु । ता होइ पुच्छणिजो नियदइयापुत्तवृत्तंतं ॥२॥ इय निच्छिऊण उवविठ्ठो उचियासणे राया, गुरुणावि पारद्धा धम्मकहा, पुणरवि पडिबुद्धा पभूयपाणिणो, राइणावि पत्थावमुवलब्भ पुच्छिओ सूरी-भयवं! निच्छियं मए, जहा-तं नत्थि न जाणह तुम्भे, ता काऊणाणुकंपं साहह कइया भारियाए सुएहि व सह मम समागमो भविस्सइत्ति, गुरुणा भणियं-महाराय ! धम्मुजमेण तदंतरा मो जया होहिइ, राइणा भणियं-भयवं! जाणामि एयं, केवलं दुस्सहविओगविहुरो न सकेमि ॥१०२॥ धम्मुजमं काउं, चित्तनिरोहसव्यपेक्खोहि धम्मलक्खो कहमम्हारिसेहिं साहिउं तीरइ ?, ता सबहा कुणह पसायं, निवेयह अवरमुवायंति, गुरुणा भणियं-जइ एवं ता पजुवासेसु पइदिणं मुणिजणं, एयं खु परमोवाओ वंछियकज्ज NSCRECARRIERLUSTECRUARYAN Jain Education For Private Personal use only LATinelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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