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________________ श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव ॥९२॥ RDC RECRECORDERARMSANCHAR एयाए चित्तवित्तिं अवियाणिय जइ वरेज निवपुत्तो। जो वा सो वा आजम्म दुक्खिया होज ता एसा ॥२॥ शीलमत्याः इति परिभाविऊण पुच्छिया सा नरवइणा-पुत्ति ! को तुज्झ वरो दिजइ ? किं सुरूवो उयाहु समरंगणसवडंमुह- | प्रतिज्ञा. सुहडपडिक्खलणपयंडपरकमो किं वा समरभीरुओत्ति, तओ इसिं विहसिऊण भणियं तीए-ताओ जाणइ, राइणा भणियं-पुत्ति ! अवरोहकयकज्जाइं न सुहावहाइं होंति ता सम्ममणुचिंतिय भणसु, तीए भणियं-ताय ! जइ एवं 8 ता जो एयं कालमेहमलं नियभुयवलेण महियपरकम करेजा सो मम वरो होजत्ति, राइणा चिंतियं-अहो बलाणुरागिणी मम तणया, को पुण समत्थो एयस्स वइयरस्स ?, भणिया य सा-पुत्ति ! मा कुणसु एवं, अतुलमलो खु एसो, ता अन्नं वरं पत्थेसु, तीए भणियं-ताय ! जइ परं हुयासणो अन्नोत्ति, इय तीए निच्छयमुवलब्भ रन्ना पेसिया सवनरवईणं दूया, निवेयाविओ एस वुत्तंतो, एयं च अणब्भुवगच्छमाणा नरवइकुमारा एवं पर्यपंति को बोहेज कयंतं ? को वा हालाहलं विसं भक्खे ? । को कालमेहमलेण जुज्झिउं सह पवजेजा ॥१॥ तेण न कजं रजेण किंपिन कजं च तीऍ भजाए । जा लब्भइ खित्तसंसयजीवियवेहिं कट्टेण ॥२॥ एवं च निभग्गजणमणोरहेहिं असिद्धकजेहिं चेव पडिनियत्तिऊण दूएहिं रण्णो कहिओ मल्लजुज्झाणभुवग-8 मगम्भो नीसेसनरेसरकुमारवुत्तंतो, तं च सोऊण गाढसोगाउलो जाओ देवसेणनरवई, एत्थंतरे विनत्तो मंतिसाम- ॥९२॥ तेहि-देव! किमेवं उच्छन्नुच्छाहा होह, अजवि देवेण अनिरूविओ चिठ्ठइ कुरुदेसाहिवनरवइसुओ नरविक्कमकुमारो,! CRECENTERPREMORSCORRECIM JainEducation interme For Private Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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