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________________ विनायगमणवइयरेणं पडिरुद्धो तिविद्दुकुमारेण अयलपरिगएणं, भणिओ य रे दूयाहम ! अइदुट्ठ धिट्ट पाविट्ठ कत्थ वञ्चिहिसि । पेच्छणयरंगभंगं तइया काउं मम समक्खं? ॥ १॥ निन्भग्ग ! गरुयराउलसेवणओऽविहु पभूयकालेणं । पत्थावापत्थावं न मुणसि कि सिक्खिओ तंसि ? ॥२॥ नियजण! वयणविन्नासपमुहगुणवित्थरेण उवहससि । सक्कगुरुपि विदूकुह अन्नेव वियड्डिमा तुज्झ१ ॥ ३॥ ता पाव! पावसु फलं सदुचेट्ठियतरुस्स दुविसहं । सुमरेसु य इट्ठदेवं माऽकयधम्मो धुवं मरसु ॥४॥ इय भणिऊण तिविद्द निझुरमुट्ठिप्पहारमुग्गिरिउं । जा हणइ नेव दूयं अयलेणं जंपियं ताव ॥ ५॥ भो भो कुमार! विरमसु गोहचंपिव विमुंच एयवहं । या रंडा भंडा कयावराहावि अहणणिजा ॥६॥ ताहे भणिया पुरिसा! रे रे सिग्धं इमस्स पावस्स । मोत्तूण जीवियव्यं सेसं अवहरह वत्थाई ॥७॥ पुरिसेहिं तओ कुमरस्स वयणओ लट्ठिमुट्ठिपभिईहिं । गहिऊण तं समत्थं धणाइयं अवहडं तस्स ॥८॥ भयभरविहुरत्तणओ नियंसियं वत्थमविय से गलियं । भूमीऍ निवडणेणं धूलीए धूसरियमंगं ॥९॥ अह खमणगोष मुणिउब्व पंडरंगोब्व तक्खणं जाओ। सो चंडवेगदूओ नियजीवियरक्खगट्ठाए ॥ १० ॥ सेसो पुण परिवारो जीवियखी य पहरणे मोत्तुं । सयलदिसासु पलाणो दंसणमेत्तेऽवि कुमरस्स ॥११॥ एवं च लुचविलुचियं काउं दूयं वलिया कुमारा, जाणिया य वत्ता पयावइणा, तो भीउबिग्गो चिंतिउमाढत्तो Jain Education I ntional For Private & Personal Use Only htinelibrary.org
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
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