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________________ Jain Education सुखबोधार्थं समासेन” वाली वृद्धटीका होवी जोईए, अथवा तो कोई अन्य टीका होवी जोईए. तेमां कर्त्तानुं नाम न होवाथी ते श्रीहरिभद्रजीकृत छे एवं अनुमान करवामां आव्युं हशे तेम मारुं मानवुं थाय छे. अमे बहार पाडीए छीए ए आ टीका भाषनगर संस्थाए बहार पाडी छे, ते करतां तद्दन जूदी ज वस्तु छे. अमने विशेष हर्ष थाय छे के एक अप्रसिद्ध कृति ज प्रसिद्ध करबा अमे भाग्यशाली थया छीये. आ वे तद्दन जूदी ज वस्तुओ छे ए जाणवानुं सौभाग्य अमने नीचे प्रमाणे अचानक प्राप्त थयुं छे: परम श्रुत प्रभावक मंडल, मुंबईने प्रशमरविनुं भाषांतर भावनगरथी छपायेला उपरथी छपावानी इच्छा होवाथी तेना जैन-दिगंबर पंडित पर भावनगर संस्थानी छपावेल प्रशमरति मोकलवामां आवी. असे पण फरीथी प्रशमरति छपावीए छीए अने एना संशोधक परमश्रुतज्ञानी अधुना अप्रतीम, अजोड आगम-निगम-तत्त्वज्ञाता श्वेताम्बर जैन आचार्य आनन्दसागर सूरीश्वरजी छे तेथी ए मुद्रण विशेषे शुद्ध द्दशे तेम ते विद्वानने भासतां अमारी पासेथी छपायेल आखो ग्रंथ या तो अधूरो होय तो तेटला पण छपायेला | फारमो अमारी पासेथी मांगतां अमे जेटला छपाया हता तेटला तेमने पूरा पाड्या. दिगंबर जैन पंडितने यन्नेनुं अबलोकन करतां जणायुं के बनेमां कर्त्तानुं नाम श्रीहरिभद्रसूरि सूचवेल छे, ज्यारे बन्ने वस्तु तद्दन निराली ज छे, अने तेमां पण श्वेतांबर - जैन आचार्य आनन्दसागर सूरिवालुं मुद्रण तद्दन ओहूं छे, या तो त्रूटक छे, ज्यारे भावनगरवाळु मुद्रण सम्पूर्ण अने विस्तारवालुं छे. आ उपरथी मुंबईना तेना काम करनार मारफते अमारा उपर सूचन आव्युं, जेथी अमोने अमारुं तथा भावनगर संस्थानुं एम बन्ने मुद्रणो साद्यंत जोई - जोवडावी जवानी फरज पडी. ए मुद्रणो जोई जतां मालूम पड्युं के अमाराषाळी श्रीहरिभद्रजीनी "सरल-सुबोध-टीका" छे, ज्यारे भावनगर संस्थावाळी "वृद्ध-टीका" अथवा कोई अन्य टीका ज होई बन्ने प्रन्थो तद्दन निराला ज छे. tional For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600109
Book TitlePrashamrati Prakarana
Original Sutra AuthorUmaswami, Umaswati
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1940
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size10 MB
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