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________________ प्रवचन सूत्रे २६८ अस्वाध्यायाः ॥५१५॥ -4+4G १४५०-८१ हत्थाउ पोरिसी तिन्नि । महकाइ अहोरत्तं रत्ते वूढे य सुद्धं तु ॥ ६६ ॥ अंडगमुज्झिय कप्पे न य भूमि खणंति इयरहा तिन्नि । असझाइयप्पमाणं मच्छियपाया जहिं बुडे ॥ ६७ ॥ अजराउ तिन्नि पोरिसि जराउयाणं जरे पडे तिन्नि । रायपहबिंदुपडिए कप्पे बूढे पुणो नत्थि ॥ ६८॥ माणुस्सयं चउद्धा अढि मोत्तूण सयमहोरत्तं । परियावन्नविवन्ने सेसे तिय सत्त अद्वैव ॥ ६९ ॥ रत्तुक्कडा उ इत्थी अट्ठ दिणे तेण सत्त सुक्कहिए । तिण्ह दिणाण परेणं अणोउगं तं महारत्तं ॥७॥ दंते दिवि विगिंचण सेसढि बारसेव वरिसाई। दङ्वीसु न चेव य कीरइ सज्झायपरिहारो ॥ ७१॥२६८ द्वारम् ॥ विक्खंभो कोडिसयं तिसट्ठिकोडी उ लक्खचुलसीई । नंदीसरो पमाणंगुलेण इय जोयणपमाणो ॥७२॥ एयंतो |अंजणरयणसामकरपसरपूरिओवंता । बालतमालवणावलिजुयब घणपडलकलियब ॥ ७३ ॥ चउरो अंजणगिरिणो पुवाइदिसासु ताणमेकेको । चुलसीसहस्सउच्चो ओगाढो जोयणसहस्सं ॥ ७४ ॥ जुम्मं । मूले सहस्सदसगं विक्खंभे तस्स उवरि सयदसगं । तेसु घणमणिमयाई सिद्धाययणाणि चत्तारि ॥ ७५॥ जोयणसयदीहाई बावतरि ऊसियाई रम्माइं । पन्नास वित्थडाई चउद्दुवाराई सधयाई ॥ ७६ ॥ पइदारं मणितोरणपेच्छामंडवविरायमाणाई । पञ्चधणुस्सयऊसियअद्रुत्तरसयजिणजुयाइं ॥ ७७ ॥ मणिपेढिया महिंदज्झया य पोक्खरिणिया य पासेसुं । कंकेल्लिसत्तवन्नयचंपयच्यावणजुयाओ ॥ ७८ ॥ नंदुत्तरा य नंदा आणंदा नंदिवद्धणा नाम । पुक्खरिणीओ चउरो पुर्वजणचउदिसिं संति ॥७९॥ विक्खंभायामेहिं जोय|णलक्खप्पमाणजुत्ताओ। दसजोयसियाओ चउदिसितोरणवणजुयाओ॥ ८॥ तासि मज्झे दहिमुह महीहरा दुद्धद| हियसियवन्ना । पोक्खरिणीकलोलाहणणोब्भवफेणपिण्डुव ॥ ८१॥ चउसद्विसहस्सुच्चा दसजोयणसहस्सवित्थडा सके। XAMISHAHARANASAN ॥५१५॥ Jain Education in For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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