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________________ ANSAANEX उस्सेहंगुलमेगं हवइ पमाणंगुलं सहस्सगुणं । उस्सेहंगुलदुगुणं वीरस्सायंगुलं भणियं ॥ ९६ ॥ आयंगुलेण वत्थु उस्सेहपमाणओ मिणसु देहं । नगपुढविविमाणाई मिणसु पमाणंगुलेणं तु ॥९७ ॥ २५४ द्वारम् ॥ जंबूदीवाउ असंखेजइमा अरुणवरसमुद्दाओ । बायालीससहस्से जगईउ जलं विलंघेउं ॥ ९८ ॥ समसेणीए सतरस | एकवीसाइं जोयणसयाई । उल्लसिओ तमरूवो वलयागारो अउक्काओ ॥ ९९ ॥ तिरिय पवित्थरमाणो आवरयंतो सुरालदायचउक्कं । पंचमकप्पे रिटुंमि पत्थडे चउदिसिं मिलिओ ॥ १४००॥ हेट्ठा मल्लयमूलट्ठिइढिओ उवरि बंभलोयं जा । कुक्कु डपंजरगागारसंठिओ सो तमक्काओ॥१॥ दुविहो से विक्खंभो संखेजो अस्थि तह असंखेजो । पढमंमिवि विक्खंभो संखेजा जोयणसहस्सा ॥२॥ परिहीऍ ते असंखा बीए विक्खंभपरिहिजोएहिं । हुति असंखसहस्सा नवरमिमं होइ वित्थारो॥ ३ ॥ २५५ द्वारम् ॥ सिद्धा १ निगोयजीवा २ वणस्सई ३ काल ४ पोग्गला ५ चेव । सबमलोगागासं ६ छप्पेएऽणतया नेया ॥४॥२५६ द्वारम् ॥ अंग १ सुविणं २ च सरं ३ उप्पायं ४ अंतरिक्ख ५ भोमं च ६ । वंजण ७ लक्खण ८ मेव य अट्ठपयारं इह निमित्तं है॥५॥ अंगप्फुरणाईहिं सुहासुहं जमिह भन्नइ तमंगं १ । तह सुसुमिणयदुस्सुमिणएहिं जं सुमिणयंति तयं २॥ ६॥ इठमणिटुं जं सरविसेसओ तं सरंति विन्नेयं ३ । रुहिरवरिसाइ जमि जायइ भन्नइ तमुप्पायं ४॥७॥ गहवेहभूयअट्ट६ हासपमुहं जमंतरिक्खं तं ५ । भोमं च भूमिकंपाइएहिं नजइ वियारेहिं ६॥८॥ इह वंजणं मसाई ७ लंछणपमुहं तु लक्खणं भणियं ८ । सुहअसुहसूयगाई अंगाईयाई अट्ठावि ॥९॥२५७ द्वारम् ॥ Jain Education Intemaliona For Private & Personel Use Only IDMww.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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