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________________ तत्तो संखिज्जगुणा जोइसियाणं विमाणाओ ॥ ५० ॥ बत्तीसऽट्ठावीसा वारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा । आरेण बंभलोया | विमाणसंखा भवे एसा ॥ ५१ ॥ पंचास चत्त छच्चेव सहस्सा लंत सुक्क सहसारे । सय चउरो आणयपाणएसु तिन्नारणचुयए ॥ ५२ ॥ एक्कारसुत्तरं हेट्ठिमेसु सत्तुत्तरं च मज्झिमए । सयमेगं उवरिमए पंचैव अणुत्तरविमाणा ॥ ५३ ॥ चुलसीई सयसहस्सा सत्ताणउई भवे सहस्साइं । तेवीसं च विमाणा विमाणसंखा भवे एसा ॥ ५४ ॥ १९५ द्वारम् ॥ भवणवण जोइसोहम्मीसाणे सत्त हुंति रयणीओ । एक्केकहाणि सेसे दु दुगे य दुगे चउके य ॥ ५५ ॥ गेविज्जेसुं दोन्नि य एगा रयणी अणुत्तरेसु भवे । भवधारणिज्ज एसा उक्कोसा होइ नायवा ॥ ५६ ॥ सबेसुक्कोसा जोयणाण वेउबिया सयसहस्सं । गेविज्जणुत्तरेसुं उत्तरवेउबिया नत्थि ॥ ५७ ॥ अंगुल असंखभागो जहन्न भवधारणिज्ज पारंभे । संखेज्जा अवगा हण उत्तरवेउधिया सावि ॥ ५८ ॥ १९६ द्वारम् ॥ किण्हा नीला काऊ तेऊलेसा य भवणवंतरिया । जोइससोहंमीसाण तेऊलेसा मुणेयचा ॥ ५९ ॥ कप्पे सणकुमारे | माहिंदे चैव बंभलोए य । एएसु पम्हलेसा तेण परं सुक्कलेसाओ ॥ ६० ॥ १९७ द्वारम् ॥ सक्कीसाणा पढमं दोच्चं च सणकुमारमाहिंदा । तच्चं च बंभलंतग सुक्कसहस्सारय चउत्थिं ॥ ६१ ॥ आणयपाणयकप्पे वेवा पासंति पंचमीं पुढवीं । तं चेव आरणच्चुय ओहिणाणेण पाति ॥ ६२ ॥ छट्ठि हिट्ठिममज्झिमगेविज्जा सत्तमिं च | उवरिल्ला । संभिन्नलोगनालिं पासंति अणुत्तरा देवा ॥ ६३ ॥ एए सिमसंखेज्जा तिरियं दीवा य सागरा चेव । बहुययरं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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