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________________ प्रवचन सूत्रे ॥४७९॥ । COMSEX ईसिप्पन्भाराए उवरिं खलु जोयणस्स जो कोसो। कोसस्स य छन्भाए सिद्धाणोगाहणा भणिया ॥४८५॥ अलोए सिद्धभेदापडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्ठिया । इह बोंदि चइत्ताणं, तत्थ गंतूण सिज्झइ ॥ ४८६ ॥ ५५ द्वारम् ॥ दीनि तिण्णि सया तेत्तीसा धणुत्तिभागो य होइ बोद्धबो । एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिया ॥४८७॥ ५६ द्वारम् ॥ ४९-६० चत्तारि य रयणीओ रयणि तिभागूणिया य बोद्धबा । एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिया ॥४८८॥ ५७ द्वारम् एगा य होइ रयणी अद्वेव य अंगुलाइ साहीया । एसा खलु सिद्धाणं जहण्णओगाहणा भणिया ॥४८९॥ ५८ द्वारम् ॥ सिरि उसहसेणपहु १ वारिसेण २ सिरिवद्धमाणजिणनाह ३ । चंदाणण ४ जिण सबेवि भवहरा होह मह तुन्भे ६ ॥ ४९० ॥ ५९ द्वारम् ॥ पत्तं पत्ताबंधो पायढवणं च पायकेसरिया। पडलाइं रयत्ताणं च गुच्छओ पायनिज्जोगो ॥ ४९१ ॥ तिन्नेव य पच्छागा |रयहरणं चेव होइ मुहपोत्ती। एसो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु ॥४९२ ॥ जिणकप्पियावि दुविहा पाणीपाया पडिग्गहधरा य । पाउरणमपाउरणा एक्केका ते भवे दुविहा ॥ ४९३ ॥ दुग १ तिग २ चउक्क ३ पणगं ४ नव ५ दस ६ एक्कारसेव ७ बारसगं ८ । एए अट्ठ विगप्पा जिणकप्पे हुंति उवहिस्स ॥ ४९४ ॥ पुत्तीरयहरणेहिं दुविहो तिविहो य एककप्पजुओ। चउहा कप्पदुएणं कप्पतिगेणं तु पंचविहो ॥ ४९५ ॥ दुविहो तिविहो चउहा पंचविहोऽविहु सपायनिजोगो। ॥४७९ ॥ जायइ नवहा दसहा एक्कारसहा दुवालसहा ॥ ४९६ ॥ अहवा दुगं च नवगं उवगरणे हुंति दुन्नि उ विगप्पा । पाउरण Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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