________________
RAMECHAALIK
गुरुउच्चसमासणचिट्ठणाइकरणेण दो चरिमा ॥ १४९ ॥ अाढियं च थेद्धं च, पविद्धं परिपिंडियं । टोलगेइ अंकुसं चेव, || तहा कच्छवरिंगियं ॥१५०॥ मच्छुबत्तं मणसा पढें तह य वेइयांबद्धं । भयसा चेव भयंतं मित्ती गौरव कारणों ॥१५॥
तेणियं पडिणीयं च, सुटुं तजियमेव य । सहूं च हीलियं चेव, तहा विपलिउंचियं ॥ १५२ ॥ दिट्ठमदिटुं च तहा, सिंग |च कर मोर्यणं । आलिट्ठमणालिटुं, ॐणं उत्तरचूंलियं ॥ १५३ ॥ यं च ढड्डरं चेव, चुड्डुलियं च अपच्छिमं । बत्तीसदोसपरिसुद्धं, किइकम्मं पउंजए ॥ १५४ ॥ आयरकरणं आढा तविवरीयं अणाढियं होई । दवे भावे थद्धो चउभंगो दबओ भईओ ॥१५५॥ पविद्धमणुवयारं जं अप्पिंतो णिजंतिओ होइ । जत्थ व तत्थ व उज्झइ कियकिच्चोवक्खरं चेव ॥१५६॥ | संपिडिए व वंदइ परिपिंडियवयणकरणओ वावि। टोलोब उप्फिडतो ओसक्कहिसक्कणे कुणई ॥ १५७॥ उवगरणे हत्थंमि |
व घेत्तु निवेसेइ अंकुसं बिति । ठिउविट्ठरिंगणं जं तं कच्छवरिंगियं जाण ॥ १५८ ॥ उढितनिवेसिंतो उच्चत्तइ मच्छउव | जलमज्झे । वंदिउकामो वऽन्नं झसो व परियत्तएँ तुरियं ॥ १५९ ॥ अप्पपरपत्तिएणं मणप्पेओसो य वेड्यापर्णगं । तं पुण | जाणूवरि १ जाणुहिट्ठाओ २ जाणुबाहिं ३ वा ॥ १६० ॥ कुणइ करे जाणुं वा एगयरं ठवइ करजुयलमज्झे ४ । उच्छंगे|
करइ करे ५ भयं तु नितहणाईयं ॥१६॥ भयइ व भयिस्सइत्ति य इअ वंदइ होरयं निवेसंतो। एमेव य मित्तीएं गारव से सिखाविणीओऽहं ॥१६२॥ नाणाइतिगं मोत्तुं कारणमिहलोयसाहयं होइ । पूयागारवहेऊं नाणग्गहणेवि एमेव ॥१६३॥
हाउं परस्स दिष्टुिं बंदंते तेणियं हवइ एयं । तेणोविव अप्पाणं गृहइ ओभावणा माँ मे ॥१६४॥ आहारस्स उ काले नीहारस्सावि होइ पडिणीयं । रोसेण धमधमंतो जं वंदइ दुमयं तु ॥१६५॥ नवि कुप्पसि न पसीयसि कट्ठसिवो चेव तज्जियं
AACAMAR
Jain Education International
For Private & Personel Use Only
www.jainelibrary.org