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एगविह १ दुहि २ तिविहं ३ चउहा ४ पंचविह ५ दसविहं ६ सम्मं । दद्दाइ कारगाई उवसमभेएहि वा सम्मं ॥ ९४२ ॥ एगविहं सम्मरुई १ निसग्गऽभिगमेहि २ तं भवेदुविहं । तिविहं तं खाई ३ अहवावि हु कारगाईहिं ॥ ९४३ ॥ सम्मत्तमीस मिच्छत्तकम्मक्खयओ भांति तं खइयं । मिच्छत्तखओवसमा खाओवसमं ववइसंति ॥ ९४४ ॥ मिच्छत्तस्स उवसमा उवसमयं तं भांति समयन्नू । तं उवसमसेढीए आइमसम्मत्तलाभे वा ॥ ९४५ ॥ विहिआणुट्ठाणं पुण कारगहि रोगं तु सद्दहणं । मिच्छद्द्द्दिट्ठी दीवइ जं तत्ते दीवगं तं तु ॥ ९४६ ॥ खइयाई सासायणसहियं तं चविहं तु विन्नेयं । तं सम्मत्त भंसे मिच्छत्ताऽऽपत्तिरूवं तु ॥ ९४७ ॥ वेययसंजुत्तं पुण एवं चिय पंचहा विणिद्दिद्वं । सम्मत्तचरिमपोग्गलवेयणकाले तयं होइ ॥ ९४८ ॥ एवं चिय पंचविहं निसग्गाभिगमभेयओ दसहा । अहवा निसग्गरुई इच्चाइ जमागमे भणिअं ॥ ९४९ ॥ निस्सग्गु १ वएसई २ आणरुई ३ सुत्त ४ बीय ५ रुईमेव । अहिगम ६ वित्थाररुई ७ किरिया ८ संखेव ९ धम्मरुई १० ॥ ९५० ॥ जो जिणदिट्ठे भावे चविहे सहहेइ सयमेव । एमेव नन्नहत्ति य निसग्गरुत्ति नायो ।। ९५१ ॥ एए चेव उ भावे उवइट्ठे जो परेण सद्दहइ । छउमत्थेण जिणेण व उवएसरुइत्ति नायो ।। ९५२ ॥ रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ । आणाए रोयंतो सो खलु आणारुई नाम ॥ ९५३ ॥ जो सुत्तमहितो सुएणमोगाहई उ सम्मत्तं ।
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