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________________ तीतं च दधि वर्जनीयं, जीवसंसक्क्या प्राणातिपातादिलक्षणदोषसंभवात्, एतानि द्वाविंशतिसङ्ख्यानि वर्जनीयानि वस्तूनि कृपापरी-1 तचेतसः सन्तो हे भव्यजना ! वर्जयत-परिहरतेति ॥ २४६ ॥ इदानीं 'उस्सग्गो'त्ति पञ्चमं द्वारमाह घोडग लयां य खम्भे कुड़े माले य सबैरि वहनियले । लंबुत्तर थर्ण उड्डी संजय खलिणे य वायस कविढे १४ ॥२४७॥ सीसोकंपिये मई अंगुलिभमुंहा य वारुणी पेही । एए काउस्सग्गे हवंति दोसा इगुणवीसं ॥ २४८ ॥ आसोव्व विसमपायं आउंटावित्तु ठाइ उस्सग्गे । कंपइ काउस्सग्गे लयव्व खरपवणेसंगणं ॥ २४९ ॥ खंभे वा कुड़े वा अवठंभिय कुणइ काउसग्गं तु । माले य उत्तमंगं अवठंभिय कुणइ उस्सग्गं ॥२५०॥ सबरी वसणविरहिया करेहि सागारिअंजह ठएइ। ठइऊण गुज्झदेसं करेहि इअ कुणइ उस्सग्गं ॥ २५१ ॥ अवणामिउत्तमंगो काउस्सग्गं जहा कुलवहुव्व । नियलियआ विव चरणे वित्थारिय अहव मेलविउं ॥ २५२॥ काऊण चोलपर्ट अविहीए नाहिमंडलस्सुवरि । हेहा य जाणुमेत्तं चिट्ठइ लंबुत्तरुस्सग्गं ॥ २५३ ॥ पच्छाइऊण य थणे चोलगपट्टेण ठाइ उस्सग्गं । दसाइरक्खणहा अहवाऽणाभोगदोसेणं ॥ २५४ ॥ मेलित्तु पण्हियाओ चलणे वित्थारिऊण बाहिरओ। काउस्सग्गं एसो बाहिरउडी मुणेयव्वो ॥ २५५ ॥ अंगुढे मेलविउ वित्थारिय पण्हिआउ बाहिति । काउस्सग्गं एसो भणिओ अभितरुद्धित्ति ॥ ॥२५६ ॥ कप्पं वा पहुं वा पाउणि संजइव्व उस्सग्गं । ठाइ य खलिणं व जहा रयहरणं अग्गओ Jain Educa t ion For Private & Personel Use Only W ww.jainelibrary.org
SR No.600107
Book TitlePravachan Saroddhar Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1922
Total Pages444
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size22 MB
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