SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education Inter ॐॐ तुज्झ जोयं ओसहभे सज्जखज्जपेज्जाई । अम्हाणवि आवासे होही तं जेण अविगप्पं ॥ ३४ ॥ लोओऽवि तरस पणओ तग्गुणरागेण रंजिओ य दृढं । तं चिय गुणियं पेच्छइ, लेइ न नामपि अन्नस्स ॥ ३५ ॥ अण्णे भण्णंति एसे गपिंडिओ तेण तं खु अट्ठपयं । लद्धं जेण निर्मर्तितस्सवि गेण्हइ नऽन्नस्स ॥ ३६ ॥ पत्ता य कमेण पुरं सत्थाहणावि नियगिहं | चेत्र । काराविओ मढो से तेणवि मुंडावियं सीसं ॥ ३७ ॥ कासायचीवरधरो विक्खाओ तंमि सो पुरे जाओ। दिज्जं तंपि न इच्छइ आहारं सेट्ठिणा पच्छा ॥ ३८ ॥ पारणगादिणे लोगो नियनियगेहंमि कुणइ आढतिं । तस्सद्वा एसो उण | एगगिहे पारिडं वलइ ॥ ३९ ॥ जाणइ न सेसलोओ करसवि गेहंमि पारियं इमिणा । गहियाहारो चिट्ठइ पडिवालंतो नियमिहेसु ॥ ४० ॥ तो सेसजाणणट्टा मिलिऊण परोप्परं नयरलोओ । कुणइ इमं संकेयं भतिपरो इंदणागंमि | ॥ ४१ ॥ कस्सवि जस्स पडिन्छइ आहारो मुणिवरो इमो तेणं । लोयरस जाणणट्ठा भेरी ताडावियव्यत्ति ॥ ४२ ॥ विचे पारणयंमी जेण जणो नियनियेसु कज्जेसु । लग्गइ एवं वच्चइ कालो अह अण्णया तत्थ 11 ४३ ॥ विहरंतो पुरपट्टणगामागरनगरमंडियं वसुहं । सिरिवद्ध माणसामी समोसढो गुणसिलुजाणे ॥ ४४ ॥ सुतत्थपोरिसाए उबार भिक्खाइ नीहरंतो य । गोयमसामी रुद्धो वीरेण असणं For Private & Personal Use Only w.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy