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________________ ॥२९॥ नवपद- वि । सत्थोऽवि ताव वच्चइ, समागया जाव गोवेला ॥ २२ ॥ तो आवासं गिण्हइ, सच्छायजलासए पएसंमि । वृत्तिम्मू.देव वृत्त यो सिद्धे भोयणजाए स इंदनागोऽवि भिक्खत्थं ॥ २३ ॥ सत्यंमि समोयरिओ, लदो भिक्खाएं पवर घयकूरो ।। भुत्ता य रुक्खहेट्ठा सत्थेण समं पुणो चलिओ ॥ २४ ॥ अजिण्णदोसओ से बीयदिणे नासि तारिसी भुक्खा । तो न पविट्ठो सत्थे भिक्खत्थं सेद्विणा दिहो ॥ २५ ॥ तरुहेट्ठा उवविठ्ठो झाणोवगओ मुणिव तो सेट्ठी। चिंतेइ नियः । मणंमी अज्जं उववासिओ एसो ॥ २६ ॥ अव्वत्तलिंगियं तं, तइयदिणे सत्थमागयं दई । सत्थवई से दावइ निबं । पवरं च आहारं ॥ २७ ॥ तेणं च दो दिणाई अजिण्णेणुवहया छुड़ा तस्स । सेट्ठीवि मुणइ एसो छद्राओ पारणं कुणइ ॥ २८ ॥ पत्तो चउत्थदियहे पुट्ठो कि नागओऽसि दुण्णि दिणे १ । सो तुहिको अच्छइ छट्टतवोत्ती all कलइ सेट्ठी ॥ २९ ॥ जओ भणियं-" छण्णो धम्मो पयडं च पोरुसं च परकलत्तपरिहरणं । गंजणरहिओ जम्मो राढाइत्ताण निव्वहइ ॥ ३० ॥" एवं च तवगुणेणं स रंजिओ देइ तस्स आहारं । सुसिणिहाइगुणजुयं पारणगदिणमि | तुट्ठमणो ॥३१॥ तदुवटुंभवसेण य बहुबहुयरअउववासकरणाओ। जाओ मासुववासी कमेण सो इंदनागमणी ॥३२॥ लाभणइ य तं सिद्धत्थो न जाव नयर मुणे ! तुमं पत्तो । ताव न पारणगहा अन्नावासंमि गंतव्वं ॥ ३३ ॥ जं किंपि। JainEducationY I For Private Personel Use Only
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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