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________________ नवपद वृत्तिः मू. देव. वृ. यशा. ॥ २४ ॥ Jain Education रमणीओ तुह पक्खो सव्वहा एसो ॥ १६ ॥ तो तुहिको थक्को चिंतंतो ताव हुज्ज उ समग्गं । पुत्रं नवमं पच्छा खोडीहामो पुणोवि इमं ॥ १७ ॥ अन्नया नवमपुत्रे साहूण पच्चक्खाणाहिगारे - पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए इच्चाइ सोऊण गोडामाहिलो भणइ-पच्चक्खाणं सेयं अप्परिमाणेण होइ कायव्यं । जेसिं तु परीमाणं तं दुद्वं आससा होइ ॥ १८ ॥ एवं पण्णविन्तो य विंझेण भणिओ-न जुत्तमेयं जं तुमं भणसि, तओ तेण जं नवमपुव्यरस अवसेसं तं सम्मत्तंति चिंतिऊण भणिओ विंझो - किं ताव तुमं भणसि ?, जो तुज्झ वक्खाणेइ पूसमित्तो सो चेव भगउ, एवं वोत्तुं उडिओ तट्ठाणाओ, गओ आयरियस्यासं, भणियं च तेण-जह अज्जराक्खएहिं वक्खायं तह न किं परूवेसि ? || सुयमयमत्तो होउं मा सुत्तासायणं कुणसु ॥ १९ ॥ भणिओ य निययपक्खो सुरिस्यासंमि सूरिणाऽवि तओ । भणिओ न जुत्तिजुत्तो तुह पक्खो जह तहा सुणसु ॥ २० ॥ जं तात्र तए भणियं जावज्जीवति सप्परीमाणं । पच्चक्खाणमजुत्तं आसंसादोसओ तं न ॥ २१ ॥ कयपच्चक्खाणाणं नासंसा तत्थ किं तु देवते । मा होज्जा वयभंगो | मुणीण कालावही तेणं ॥ २२ ॥ अप्परिमाणे उ कए हवंति वयभंगमाइया दोसा । ता अभिनिवेसमहुगा मुंचमु | पडिवज्ज मह वयणं ॥ २३ ॥ एवं भणिओ मन्नइ न जाव ता अन्नगच्छथेरावि । पुद्दा तत्तियमेत्तं वयंति तो भणइ For Private & Personal Use Only मिथ्यात्वे गोठामा हि लबूतं १० | '20 www.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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