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| ३ || १५ || दिवसेसु केतिएसबि सोलस रोगा य तीऍ संजाया । कासाई कोढता दुव्विसहा तिव्ववियणाए | ॥ १६ ॥ तेहिं परिपीडिया दीण दुम्मणा आउयक्खए मरिउं । छडीए पुढवीए नेरइयत्तेण उपपन्ना ॥ १७ ॥ बावीस | सागराई अहाउयं पालिऊण मच्छभवे । वसिउं पत्ता सत्तममहीऍ तेत्तीस अयराऊ ॥ १८ ॥ तत्तो पुणोवि मीण२९१ ॥ तणेण होऊण सत्थदाहहया । नेरइएसुप्पण्णा सत्तमपुढवीऍ तह चेव ॥ १९ ॥ एवं परंपराए एक्केकमहीऍ दुन्नि वाराउ | गोसालओव्व भमिओ पुणो अनंतं च संसारं ॥ २० ॥ संपत्ता मणुयत्तं जंबूदीवरस चेव भरहंमि । चंपाए सत्थ| वाहय सागरदत्तस्स भज्जाए ॥ २१ ॥ भद्दा सा घूया जाया सुकुमालियत्ति नामेणं । सुकुमालपाणिपाया संपत्ता जोवणारं ॥ २१ ॥ जिणदत्तसत्यवाहसुएण सा सागरेण परिणीया । वेएइ तीऍ फासं सो सिंबलिकंटयाणं व ॥ २२ ॥ सयणीयगयो पच्छा सुहप्पसुतं चइत्तु तं झत्ति । सेज्जंतरं उवगओ तत्थवि पत्ता तहा चत्ता ॥ २३ ॥ तो गंतूणं साहइ पिउणो तेणावि सागरस्स पिया । जिणदत्त उवालडो तेणवि अंबाडिओ पुत्तो ॥ २४ ॥ सो भणइ ताय ! अवि जलियजलणज्जालाकलावदुप्पेच्छं । अहमारोहामि चियं, सहे न सोमालियाफासं ॥ २५ ॥ कुर्डुतरिएण तयं सागरदत्तेण कहवि निसुयं च । भणिया धूया वच्छे ! अण्णरस तुमं पयच्छिरसं ॥ २६ ॥ अच्छसु
श्रीनव० बृह दवृत्तौ अतिथिसंविभागे
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दोषे नागश्रीकथा.
॥ २९९ ॥
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