SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education Int | इयमाइयं पढइ सुत्तं । पुव्वोग्गहमिच्छत्तं तहावि भावेण नो चयइ ॥ १३ ॥ एवं च तस्स केच्चिरदिणेसु जह जह मर्णमि परिणमियं । अमयं व सुयं तह तह विसं व मिच्छत्त बोसरियं ॥ १४ ॥ भणियं च - “जह जह सुअमवगाहइ | अइसयरसपसरसंजुयमउव्वं । तह तह पल्हाइ मुणी नवनवसंवेगसढाए ॥ १५ ॥ " मिच्छाभावंमि गए पच्छा गंतूण गुरुसया संमि । पभणइ कथंजलिउडो नाह! मए एत्तियदिणाई ॥ १६ ॥ विहलच्चिय पव्वज्जा मिच्छाभिणिवेसओ कया इहि । सुयभावणाऍ सम्मं परिणाममुवागया अज्ज || १७ || कम्मगिरिदलणवज्जं ता अज्ज पयच्छ भावपव्वज्जं । काऊण मह पसायं सामिय ! निन्नासियावसायं ॥ १८ ॥ भणइ तओ तस्स गुरू तं घण्णो एत्तिएहिवि दिहि || तित्थयराणा भावे परिणया जस्स हिययंमि ॥ १९ ॥ एवं उबवूहेडं उच्चारावर महव्वए पुणवि । पडियागयसंवेगो पडिवज्जइ सम्ममेसोऽवि ॥ २० ॥ विस्सोतियाविरहिओ वायंतो तह कमेण पुव्वगयं । गोविंदवायगो सो जाओ | विक्खायवर कित्ती ॥ २१ ॥ पुव्वुग्गहमिच्छत्ते कहियं गोविंदवायगऽक्खाणं । संसग्गियंमि एतो वोच्छं सोरट्ठसद्धस्स ॥ २२ ॥ सौराष्ट्रविषये कश्विज्जीवाजीवादितत्त्ववित् । बभूव श्रावकः श्रेष्ठो जिनधर्मपरायणः ॥ १॥ दुर्भिक्षोपद्रुते देशे, सोऽन्यदा भिक्षुभिः समम् । चचाल खल्पपाथेयः, पुरीमुज्जयिनीं प्रति ॥२॥ ततस्तथागतास्तस्मै, धर्म सुगतदेशितम् । आदिश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy