SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीनवपदट्ट हभोगोप भोग० ॥ १९७ ॥ ॥ २० ॥ वसुमित्ताए भणियं हिंसा वेए विवज्जिया ताय ! । हिंसाए विणा न य मंसभक्खणं जायइ जियाणं ॥ २१ ॥ जेसिंपि न सयंकरणं तेर्सिपि करावणं हवइ नियमा । मंसासणंमि हिंसाऍ अणुमई को व वारेइ ? ॥ २२ ॥ रयणीभोयणचाओ कुलक्कमो नऽम्ह जं च तमलीयं । जम्हा तुम्ह न पियरो निसाऍ पिंडं पडिच्छति ॥ २३ ॥ इय वृत्ते रुसिऊणं ससुरो पडिभणइ आ महापावे ! । इय दुव्वियद्धयाए मएवि सह कुणसि तं वायं ॥ २४ ॥ ता किं उत्तरपडिउत्तरेहिं जइ सासुरेण ते कज्जं । ता मुंच वायमेयं अण्णह कज्जं न चैव तए ॥ २५ ॥ तो तीऍ चिंतियं जइ एवं चिय जामि पेइयं सहसा । ता कुललंछण गरुई, तम्होवायंतरेण इमे ॥ २६ ॥ तत्थेव नेमि इय चितिऊण पडिभणइ ताय ! जइ एवं । तुम्भेऽवि एह तहियं जत्थ निवित्ती मए गहिया ॥ २७ ॥ तुम्ह समक्ख एवं जेण विवज्जेमि मण्णिए तेण । सासू ससुरो सुन्हा, चलिया उज्जेणिहुतं ते ॥ २८ ॥ वसुमित्ताभत्तारेण चिंतियं विस्सभूइणा एवं । जुत्तमिणं भणइ इमा ता जंतु इतोऽवि कहवि गुणो ॥ २९ ॥ जीयहरणंमि गामे संपत्ताऽईपओससमयंमि । माहवदिएण दिट्टु नीयाई निययगेहमि ॥ ३० ॥ काराविऊण मज्जणमह तेसिं | चैव भोग्रणनिमित्तं । आढत्ते ओयणमाइ रसवईवित्थरे तत्थ ॥ ३१ ॥ भवियन्वयावसेणं कढिज्जमाणंमि तीमणे Jain Education International For Private & Personal Use Only वसुमित्रा दृष्टान्तः ।। १९७ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy