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________________ जिणाण पूयं अट्ठपयारंपि काउमुवउत्ता । थुइथोत्तेहिं संथुणिय विहिया चियवंदणा पच्छा ॥१०॥ साहुणिपासंमि गया पच्चक्खाणं करिति वंदित्ता । उवविट्ठा धम्मकहं तओ य निसुणंति भावेण ॥ ११ ॥ एत्यंतरंमि परिणयधम्मकहा कम्मखयउवसमेणं । भणइ तहिं वसुमित्ता मज्झवि धम्मो इमो होउ ॥ १२ ॥ भयवइ ! एत्तो पभिई तो भणिया साहुणीए सा एवं । कहिओ न होइ धम्मो मणपरिणामं विणा सुयणु!॥ १३ ॥ ता जइल तह जिणधम्मो रमिओ चित्तंमि एस मइ कहिओ । ता पडिवज्जसु अरिहंत देवयं साहुणो गुरुणो ॥१४॥ अब्भुट्ठिऊण तो सा, विणएणं अंजलिं करिय सीसे । पडिवज्जइ जं भणियं परिहरइ य मंसनिसिभत्ते ॥१५॥ जयसिरिमाईयाओ पडिवजियऽणुव्वयाइं पंचावि । वंदणपुव्वं सगिहं चलियाओ सावि ताहि समं ॥ १६ ॥ नीहरिऊणं तत्तो पत्ता पिउभवणमण्णया तीसे । ससुरकुलाओ मोयावणत्थमेत्थागओ पुरिसो ॥१७॥ आभासियाओँ। सवयंसियाओं अणुमण्णिया तओ ताहिं । वहणउरंमि पत्ता ससुरकुले तत्थ चिट्ठइ य ॥ १८ ॥ नियममणुपालयंती अण्णदिणे पभणिया ससुरएणं । पुत्ति! न कुलकमो अम्ह एस निसिभत्तचाओ जं ॥१९॥ मंसस्सवि परिहारो न जुज्जए जेण वेयविहियं खु । जमणुट्राणं तं चिय वच्छे ! अम्हाण कुलधम्मो Jain Education Interne For Private & Personel Use Only min.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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