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धौतेव, तूर्यपादोऽस्य तु प्रिये ॥ ७९ ॥ भारती वरदाऽस्तु ते, भावियचित्तत्तेणं, इमस्स चिंतिय पुणो पुणो । चेव। परिवत्तं तस्सेसा बुद्धी सुंदरयरा जाया ॥ ८० ॥ माराणुभावहारगपाएण इमाएँ कामविजयित्तं । भणियं गुणाण सारं, तं पुण विरलं जओ आह ॥ ८१ ॥ अह्नाय वह्नौ बहवो विशन्ति, शस्त्रैः स्वदेहानि विदारयन्ति । चित्राणि कृच्छ्राणि समाचरन्ति, मारारिवीरं विरला जयन्ति ॥ ८२॥ एवं पुण एवं चिय, कहन्नहाऽहं विवेयजुत्ताऽवि । विसयासत्तो चिट्ठामि एत्थ वीसरिय अत्ताणं ॥८३॥ एमाइ चिंतयंतो, नागवसूऍ स एवमाभट्ठो । पिय-। यम ! किमण्णचित्तो व दीससे संपयं कहसु ? ॥ ८४ ॥ तो जाव नागदत्तो हिययगयं कहइ ताए सब्भावं आसन्ने ताव घरे अकंदरवो समुच्छलिओ ॥ ८५ ॥ अविय-हा पुत्त ! पुत्त ! पियमाइभत्त ! हा नाह ! कहि गओ साह ? । हा भायभइणिवच्छल! कह छलिओ हय कयंतेणं? ॥ ८६ ॥ हा सामिय ! गुणगणमणिकरंड! एमाइबहलहलबोली । विलवंति माइभज्जाभयणीपणईण सद्देहिं ॥ ८७ ॥ तं सोऊं नागवसू भणइ पियं णाह ! किं इमं एवं । अकंदंति बराया विलवंता करुणसहेहिं? ॥८८|| भणइ पिए ! जमदंडो सो अज्ज इमाण निवडिओ गेहे । पेक्खताणवि जेणं गिहसामी निहणमवणीओ॥ ८९ ॥ माया नो भज्जा नो भइणी नो नो य पणइवग्गो
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