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________________ नवपद. बृह. सम्यक्त्वा वि. ॥ ७५ ॥ Jain Education Int णेच्छइ, देवा तुट्ठा भणति-तुमं दद्रुमागया, पच्छा वेउब्वियं विज्जं देति, पुणरवि अन्नया जेट्टमासे सन्नाभूमिं गयं घयपुण्णेहिं निमंतेन्ति, तत्थवि दव्वादिउवओगो, नेच्छितं, तत्थ से णहगामिणी विज्जा दिन्ना, एवं सो विहरह, जाणि य ताणि पयाणुसारिलडीए गहिआणि एक्कारस अंगाणि ताणि से संजयमज्झे थिरयराणि जायाणि, तत्थ जो अज्झाइ पुत्रगयं तंपिऽणेण सव्वं गहियं, जाहे वुच्चति पढाहि ततो सो एंतगंपि कुट्टेतो अच्छइ अण्णं सुर्णेतो, अण्णया आयरिया मज्झण्हे साहूसु भिक्खं निग्गतेसु सन्नाभूमिं निग्गया, वयरसामीवि पडिस्सयवालो, सो तेसिं साहूणं चिंटियाओ मंडलीए | रएता मज्झे अप्पणा ठाउं वायणं देति, ताहे परिवाडीए एक्कारसवि अंगाणि वाएति पुत्रगयंच, जाव आयरिया आगया चिंतेंति-लहु साहू आगया, सुणंति सदं मेघोघरसियमित्र, बहिया सुर्णेता अच्छंति, नायं जहा वइरोत्ति, पच्छा ओसरिऊण | सद्दपडियं निसीहियं करेंति, मा से संका भविस्सइ, ताहे तेण तुरियं विटियाओ सट्टाणे ठत्रियाओ, निग्गंतूण दंडयं गेण्हइ, पाए पमज्जति, ताहे आयरिया चिंतेंति - माणं साहू परिहविरसंति, ता जाणावेमि, ताहे रत्तिं आपुच्छइ- अमुगं गामं वच्चामि तत्थ दो वा तिन्नि वा दिवसे अच्छिरसामि, तत्थ जोगपडिवन्ना भणति - अम्हं को वायणायरिओ ?, आय- | रिया भणति -- वइराचि, विणीया, तहत्ति पडिसुर्य, आयरिया चेत्र जाणंति, भणियं च - "सीहगिरिसुसीसाणं भदं For Private & Personal Use Only ড় ক ছট h वात्सल्ये व त्रस्वामी. ॥ ७५ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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