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________________ ॥ ६६ ॥ हुति, भावदोसो हु वज्जियन्त्रो, न य अणूवि सो तुज्झ अस्थित्ति पसंसेज्जसुत्ति, तहावि नेच्छइ पर्ससिउं, तओ अण्णादियहंमि पुणो भणिओ, ताहे पुणो २ महिलाए भणिज्जमाणेण अण्णया राइणो पुरओ पढंतस्स वररुइणो | भणियं मंतिणा -अहो सुभासियंति, तओ राइणा दीणाराण अट्ठसयं दिण्गं, एवं चैव दिणे २ दाउमाढत्तो राया, | तओ मतिणा चिंतियं-निट्ठिही रायकोसो एवंविहवएण, ता करेमि किंचि उवायं, तओ नंदं भणइ - भट्टारगा ! किं | तुब्भे एयरस देह ?, तेण भणियं-तुमे पसंसिओत्ति, सो भणइ - अहं पसंसामि लोइयकव्वाणि अविणाणि पढइ, | राया भणइ - कहं लोइयकव्वाणि एस पढइ ?, सयंकयकन्त्रपाढगो खु एसो, सयडालेण भणियं - मम धूयाओवि जओ पढंति, किमंग पुण अण्णो लोओ ?, तस्स य मंतिणो सत्त धूयाओ, तंजहा- जक्खिणी १ जक्खदिण्णा २ भूइणी ३ भूयदिण्णा ४ सेणा ५ रेणा ६ वेणा ७, तासि च पढमा एक्कसंधिया एक्कवाराए सुयं सिलोगसपि गिन्हइबीया दुसंधिया एवं जाव सत्तमा सत्तवाराहिं सुयं सिलोगसपि गेहइ, तओ राइणो पच्चाययणत्थं अण्णदियहंमि कय, | संकेयाओ अंतेउरे जवणियंतरियाओ धरियाओ सत्तवि कण्णगा, समागओ वररुई, पढियं सिलोगट्ठसयं, निसुयं ताहिं, भणियं मंतिणा -देव ! जइ तुब्भे आइसह तो नियघूयाओऽवि हक्कारिऊण एयं पढावेमि, राइणा भणियं - तुरियं नवपद बृह. सम्यक्त्या वि. Jain Education In For Private & Personal Use Only - पापण्डप्रशे साथ शक; डालो०. ॥ ६६ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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