SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किढिणसंकाइगं भरिउ ॥६६॥ समिहाओ य गहेउं पुणोवि उडयंमि आगओ खिप्पं । मोत्तण तयं गिण्हा अगणिं तो पाडए अग्गि ॥ ६७ ॥ समिहमहुसप्पिणीवारगाइहोमं सवित्थर काउं । निव्वत्तियवइसबली फलाइ आहारए पच्छा ॥ ६८ ॥ बीयपि छट्टखमणं तहेव आढवइ किं तु पारणए । दक्खिणदिसाइ गंतुं अणुजाणावेइ जमरायं ॥ ६९॥ तइयंमि पच्छिमाए वरुणं तुरियंमि उत्तरदिसाए । अणुजाणावइ धणयं एवं दिसचक्कवालेणं॥७॥ छट्ठाओ छट्ठाओ से पारंतस्स कइहिवि दिणेहिं । तयवरणखओवसमओ विभंगनाणं समुप्पण्णं ॥७१॥ पासइ य सत्त दीवे सत्त समुद्दे य एत्थ लोयंमि । तेण परं वोच्छिण्णे मन्नइ दीवे समुद्दे य ॥ ७२ ॥ तो चिंतइ किं इमिणा उप्पण्णे. Mणावि मज्झ नाणेणं १ । हस्थिणपुरंमि गंतं जं न पयासेमि लोयरस ॥ ७३॥जओ भणियं-किं ताए सिरीए पीवराए ? जा होइ अन्नदेसंमि । जा य न मित्तेहि समं जं च अमित्ता न पेच्छति ॥ ७४ ॥ ( ग्रन्थाग्रम् १०००।) इय चिंतिऊण वच्चइ तत्तो हस्थिणपुरंमि नयरंमि । आइक्खइ लोयाणं दीवसमुदाण परिमाणं॥ ७५॥ तइया य तंमि नयरे गामागरनगरपट्टणाए(ई)सु। विहरंतो संपत्तो साभी सिरिवद्धमाणजिणो ॥ ७६ ॥ जो य-सुरविसरपणयपाओ, निग्याइ. | यघाइकम्मसंघाओ । केवलनाणसहाओ वसीकयासेसगुणजाओ ॥ ७७ ॥ सहसंबवणुज्जाणे समोसढो गोयमाइ Jain Education idny For Private & Personel Use Only T ww.jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy