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________________ / २६ नवपद-चिंतयंतस्स ॥ ३२॥ सव्वोऽवि जणो पावइ सुक्खं दुक्खं च एत्थ जम्मंमि । पुवकयकम्मपरिणइवसेण निक्कारणं - मिथ्यात्वा वृत्ति-मू.व. तिचारेशिंव. यशो.नि उणं ॥ ३३ ॥ ता अस्थि मएऽवि कयं पुब्धि कम्मं विसिट्ठसुहहेऊ । रज्जंतेउररट्ठाइएहि वड्डामि जेणाहं ॥३४॥ लोयपसिद्धो य इमो ववहारो जं विढप्पइ किलेऽज । तं भुज्जइ अण्णदिणे एवं जम्मंतरेऽवि फुडं ॥ ३५ ॥ तहाअइवडिओवि रासी निच्चुवभोगेण अणुवचीयंतो । खिज्जइ जणस्स अइरा एवं पुण्णेऽवि णायव्वं ॥ ३६॥ ता जाव न गलइ मई, चलइ न दिट्ठी सुई न पम्हुसइ। सामंतमंतिमाईजणोऽवि आणं न लंघेइ ॥ ३७॥ पुवकयसुकयसेसाणुभावओ ताव तस्स बुड्किए। मज्झवि जुत्तं काउं परलोयहियं किमवि कजं ॥ ३८ ॥तं च इम-आपुच्छिऊण लोयं । रज्जे संठाविऊण सिवभई । विहरामि दिसापुंछियतावसदिक्खं गहेऊणं ॥ ३९ ॥ एत्थंतरंमि पढियं बंदिणा कालनिवेयणत्थं-उदयायलमारोहइ सूरो तह देव ! विविहकज्जेसु । किं किं सिद्धं किं व न सिद्धमिति जोयणत्थंव ॥ ४० ॥ आयण्णिऊण एयं, सयणीयाओ समुट्ठिऊण तओ । कयसयलगोसकिच्चो अत्थाणभुवं समणुपत्तो ॥४१॥ तत्थ य आहूय असेसमिलियसामंतमंतिमाईणं । भणइ नियाभिप्पायं पायं सीहासणनिविट्ठो ॥ ४२ ॥ बहुमान्नओ य तेहिं तयभिप्पाओ तओ पुणो आह । जइ एवं ता सिग्धं दिज्जउ रज्जं कुमारस्स ॥ ४३ ॥ एत्यंतरंमि पत्तो ॥३६॥ Jan Education For Private Personal Use Only Jainelibrary.org
SR No.600105
Book TitleNavpad Prakaranam
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages710
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size14 MB
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