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श्रीपञ्चव. ३ गणाणुण्णा
| अनुयोगविधिः
॥२७७॥
SEARCANESARKARGANA
उद्देति निसिज्जाओ आयरिओ तत्थ उवविसह सीसो। तो बंदई गुरू तं सहिओ सेसेहिं साहहिं॥९६४॥ भणइ अ कुण वक्खाणं तत्थ ठिओ चेव तो तओ कुणइ। णंदाइ जहासत्ती परिसं नाऊण वा जोग्गं ॥९६६॥ आयरियनिसिज्जाए उवविसणं वंदणं च तह गुरुणो । तुल्लगुणखावणट्ठा न तया दुटुं दुविहंपि ॥९६६॥ वंदंति तओ साहू उट्ठइ अ तओ पुणो णिसिज्जाओ । तत्थ निसीअई गुरू उववूहण पढममन्ने उ ॥९६७॥ धण्णो सि तुम णायं जिणवयणं जेण सबदुक्खहरं । ता सम्ममि भवया पउंजियवं सया कालं ॥९६८॥ इहरा उ रिणं परमं असम्मजोगो अजोगओ अवरो । ता तह इह जइअवं जह एत्तो केवलं होइ ॥९६९॥ परमो अ एस हेऊ केवलनाणस्स अन्नपाणीणं । मोहावणयणओ तह संवेगाइसयभावेण ॥९७० ॥ एवं उववूहेउं अणुओगविसजणह उस्सग्गो । कालस्स पडिक्कमणं पवेअणं संघविहिदाणं ॥ ९७१ ।। पच्छा य सोऽणुओगी पवयणकजम्मि निच्चमुज्जुत्तो। जोगाणं वक्खाणं करिज सिद्धतविहिणा उ ॥ ९७२ ॥ मज्झत्था बुद्धिजुआ धम्मत्थी ओघओ इमे जोगा। तह चेव पयत्थाई (य पत्ताई)सुत्तविसेसं समासज्ज ॥९७३॥ मझत्थाऽसग्गाहं एत्तोचिअ कत्थई न कुचंति । सुद्धासया य पायं होति तहाऽऽसन्नभवा य ॥ ९७४ ॥ बुद्धिजुआ गुणदोसे सुहमे तह बायरे य सवत्थ । सम्मत्तकोडिसुद्धे तत्तट्टिइए पवजंति ॥ ९७५ ॥ धम्मत्थी दिहत्थे हढोब पंकम्मि अपडिबंधाउ । उत्तारिजंति सुहं धन्ना अन्नाणसलिलाओ ॥ ९७६ ॥ पत्तो अ कप्पिओ इह सो पुण आवस्सगाइसुत्तस्स । जा सूअगडं ताजं जेणाधीति तस्सेव ॥९७७॥
॥२७७॥
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