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________________ NAGACAGRAAGRAA%ET-२ अभिमंतिऊण अक्खे बंद दवत्तिाइ ठइअमुहकमलो । माअणुजाणे खमास ता तस्सेव हिअट्ठा तस्सीसाणमणुमोअगाणं च।तह अप्पणो अ धीरो जोगस्सऽणुजाणई एवं ॥ ९५०॥ तिहिजोगम्मि पसत्थे गहिए काले निवेइए चेव । ओसरणमह णिसिज्जारयणं संघट्टणं चेव ॥ ९५१॥ तत्तो पवेइआए उवविसइ गुरू उणिअनिसिजाए। पुरओ अ ठाइ सीसो सम्ममहाजायउवकरणो ॥९५२॥ पेहिंति तओ पोत्तिं तीए अससीसगं पुणो कायं । बारस वंदण संदिस सज्झायं पट्टवामोत्ति ॥९५३॥ पट्टवसु अणुण्णाए तत्तो दुअगावि पट्ठवेइत्ति । तत्तो गुरू निसीअइ इअरोऽवि णिवेअइ तयंति ॥९५४॥ तत्तोऽवि दोऽवि विहिणा अणुओगं पठविंति उवउत्ता । वंदित्तु तओ सीसोअणुजाणावेइ अणुओगो॥९५५॥ अभिमंतिऊण अक्खे वंदइ देवे तओ गुरू विहिणा । ठिअ एव नमोक्कारं कड्डइ नंदिं च संपुन्नं ॥ ९५६ ॥ इअरोऽवि ठिओ संतो सुणेइ पोत्तीइ ठइअमुहकमलो । संविग्गो उवउत्तो अचंतं सुद्धपरिणामो॥९५७ ॥ तो कडिऊण नंदि भणइ गुरू अह इमस्स साहुस्स । अणुओगं अणुजाणे खमासमणाण हत्थेणं ॥ ९५८॥ दवगुणपज्जवेहि अ एस अणुन्नाउ वंदिउं सीसो । संदिसह किं भणामो ? इचाइ जहेव सामइए ॥ ९५९॥ नवरं सम्मं धारय अन्नेसिं तह पवेअह भणाइ । इच्छामणुसहीए सीसेण कयाइ आयरिओ॥९६०॥ तिपयक्खिणीकए तो उवविसए गुरु कए अ उस्सग्गे । सणिसेजत्तिपयक्खिण वंदण सीसस्स वावारो॥१६॥ उवविसइ गुरुसमीवे सो साहइ तस्स तिन्नि वाराओ। आयरियपरंपरएण आगए तत्थ मंतपए ॥ ९६२॥ देहतओ मुट्ठीओ अक्खाणं सुरभिगंधसहिआणं । ववतिआओ सोऽवि अउवउत्तो गिण्हई विहिणा ॥९६३ ॥ पञ्चव.४७ Jain Educati For Private Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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