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________________ श्रीपञ्चव. ३ वयठवणा ॥ २७५ ॥ Jain Educati पायं च तेण विहिणा होइ इमंति निअमो कओ सुत्ते । इहरा सामाइ अमित ओऽवि सिद्धिं गयाऽणता ॥ ९१०॥ असंतगंपि अ विहिणा गुरुगच्छमाइसेवाए। जायमणेगेसि इमं पच्छा गोविंदमाईणं ॥ ९११ ॥ एअं च उत्तमं खलु निवाणपसाहणं जिणा विंति । जं नाणदंसणाणवि फलमेअं चैव निद्दिहं ॥ ९९२ ॥ एएण उ रहिआई निच्छयओ नेअ ताई ताईपि । सफलस्स साहगत्ता पुवायरिआ तहा चाहु ॥ ९९३ ॥ निच्छ्यन अस्स चरणाय विधाए नाणदंसणवहोऽवि । ववहारस्स उ चरणे हयम्मि भयणा उ सेसाणं ॥ ९९४ ॥ णु दंसणस्स सुत्ते पाहनं जुत्तिओ जओ भणिअं । सिज्झति चरणरहिआ दंसणरहिआ न सिज्झति ॥९१५ ॥ एवं दंसणमेव निवाणपसाहगं इमं पन्तं । निअमेण जओ इमिणा इमस्स तब्भावभावित्तं ॥ ९९६ ॥ एअस्स उभावो जह दीणारस्स भूहभावम्मि । इअरेअरभावाओ न केवलातरणं ॥ ९९७ ॥ इअ दंसणप्पमाया सुद्धीओ सावगाइसंपत्ती । नउ दंसणमित्ताओ मोक्खोत्ति जओ सुए भणियं ॥ ९९८ ॥ सम्मत्तंमि उ लद्धे पलिअपुहुत्तेण सावओ होजा । चरणोवसमखयाणं सागर संवंतरा होति ॥ ९९९ ॥ एवं अपरिवडिए सम्मत्ते देवमणुअजम्मेसुं । अन्नयर सेढिवजं एगभवेणं व सवाई ॥ ९२० ॥ नेवं चरणाभावे मोक्खत्ति पडुच भावचरणं तु । दवचरणम्मि भयणा सोमाईणं अभावाओ ॥ ९२९ ॥ तेसिंपि भावचरणं तहाविहं दवचरणपुत्रं तु । अन्नभवाविकखाए विन्नेअं उत्तमत्तेणं ॥ ९२२ ॥ तह चरमसरीरन्तं अणेगभवकुसलजोगओ निअमा । पाविज्जइ जं मोहो अणाइमंतोत्ति दुबिजओ ॥ ९२३ ॥ For Private & Personal Use Only मासकल्पः सत्कथा चरणस्य मोक्षांगता 1120411 ainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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