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श्रीपञ्चव.IN ३ वयठवणा
व्रतान्यतिचारा उपस्थापना
॥२६६॥
उच्चाराइ अथंडिल वोसिर ठाणाइ वावि पुढवीए । नइमाइ दगसमीवे सागणि निक्खित्त तेउम्मि ॥ ६६४॥ वियणऽभिधारण वाए हरिए जह पुढविए तसेसुं च । एमेव गोअरगए होइ परिच्छा उकाएहिं ॥ ६६५॥ जह परिहरई संमं चोएइ व घाडिअंतहा (या) जोग्गो। होइ उवठावणाए तीएवि विही इमो होइ ॥६६६॥ अहिगय णास्सगं वामगपासम्मि वयतिगेक्केकं । पायाहिणं निवेअण गुरुगुण दिस दुविह तिविहावा ॥६६७॥ उदउल्लाइपरिच्छा अभिगय नाऊण तो वए दिति । चिइवंदणाइ काउं तत्थवि अ करिति उस्सग्गं ॥६६८॥ गुरवो वामगपासे सेहं ठावित्तु अह वए दिति । एकिक तिक्खुत्तो इमेण ठाणेणमुवउत्ता ॥ ६६९॥ कोप्परपट्टगगहणं वामकरानामिआय मुहपोत्तिं । रयहरण हस्थिदंतुल्लएहिं हत्थेहुवहावे ॥ ६७०॥ पायाहिणं निवेअण करिंति सिस्सा तओ गुरू भणइ । घड्ढाहि गुरुगुणेहिं एत्थ परिच्छा इमा वऽण्णा ॥६७१॥ ईसिं अवणयगत्ता भमंति सुविसुद्धभावणाजुत्ता । अहिसरणम्मि अ वुड्डी ओसरणे सो व अन्नो वा ॥६७२॥ दुविहा साहण दिसा तिविहा पुण साहुणीण विणेआ। होई ससत्तीए तवो आयंबिल निविगाईआ॥६७३॥ तत्तो अकारविजइ त (ज) हाणुरूवं तवोवहाणं तु । आयंबिलाणि सत्त उ किल निअमा मंडलिपवेसे॥६७४॥ तत्तो अ पण्णविजइ भावं नाऊण बहुविहं विहिणा । तो परिणए पवेसो अपरिणए होंति आणाई ॥३७५|| अणुवट्टविअं सेहं अकयविहाणं च मंडलीए उ।जो परिभुंजइ सहसा सो गुत्तिविराहओ भणिओ ॥६७६॥ तम्हा पवयणगुत्तिं रक्खंतेण भवधारिणिं परमं । परिणयओ चिअ सेहो पवेसिअबो जहा विहिणा ॥६७७॥
॥२६६॥
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