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________________ श्रीपञ्चव. २ प्रतिदि नक्रिया ॥ २६३ ॥ Jain Education चोहसवासस्स तहा आसीविसभावणं जिणा बिंति । पन्नरसवासगस्स य दिट्ठीविसभावणं तहय ॥ ५८६ ॥ सोलसवासाईसु अ एगुत्तरवड्डिएस जहसंखं । चारणभावण महसुविणभावणा तेअगनिसग्गा ॥ ५८७ ॥ erature दिट्ठीवाओ दुवालसममंगं । संपुण्णवीसबरिसो अणुवाई सङ्घसुत्तस्स ॥ ५८८ ॥ वहाण पुण आयंबिलाइ जं जस्स वन्निअं सुत्ते । तं तेणेव उ देअं इहरा आणाइआ दोसा ॥ ५८९ ॥ जं केवलणा भणिअं केवलनाणेण तत्सओ नाउं । तस्सऽण्णहा विहाणे आणाभंगो महापावो ॥ ५९० ॥ एगेण कयमकज्जं करेह तप्पच्च्या पुणो अन्नो । सायाबहुलपरंपर वोच्छेओ संजमतवाणं ॥ ५९१ ॥ मिच्छत्तं लोअस्सा न वयणमेयमिह तत्तओ एवं । वितहासेवण संकाकारणओ अहिगमेअस्स ।। ५९२ ॥ एवं चणे भविया तिवा सपरोवधाइणी नियमा । जायह जिणपडिकुट्ठा विराहणा संजमायाए ॥ ५९३ ॥ जह चेव उविहिरहिया मंताई हंदि णेव सिज्झति । होंति अ अवयारपरा तहेव एयंपि विन्नेअं ॥ ५९४ ॥ ते चेव उविहिजुत्ता जह सफला हुंति एत्थ लोअम्मि । तह चेव विहाणाओ सुत्तं नियमेण परलोए ।। ५९५ ॥ विहिदाणम्मि जिणाणं आणा आराहिया धुवं होइ । अण्णेसिं विहिदंसणकमेण मग्गस्सऽवत्थाणं ।। ५९६ ।। सम्मं जन्तकरणे अन्नेसिं अप्पणो अ सुपसत्थं । आराहणाऽऽऽययफला एवं सह संजमायाणं ॥ ५९७ ॥ तं पुण विचित्तमित्थं भणियं जं जम्मि जम्मि अंगाओ । तं जोगविहाणाओ विसेसओ एत्थ णायचं ॥ ५९८ ॥ दारं ॥ गुरुणावि चरणजोए ठिएण देअं विसुद्ध भावेणं । भावा भावपसूई पायं लोगेऽवि सिद्धमिअं ॥ ५९९ ॥ For Private & Personal Use Only सूत्रवाच नाविधिः ॥ २६३ ॥ jainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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