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________________ श्रीपञ्चव. २ प्रतिदि नक्रिया ॥ २६० ॥ Jain Education हिए का किकम्मं काउ गुरुसमीवम्मि । गिव्हंति तओ तं चिअ समगं नवकारमाईअं ॥ ५०४ ॥ आगारेहिं विसुद्धं उवत्ता जहविहीऍ जिणदि । सयमेवऽणुपालणिअं दाणुवएसे जह समाही ॥ ५०५ ॥ नवकारपोरसीए पुरिमक्कासणेगठाणे अ । आयंबिल भत्तट्ठे चरिमे अ अभिग्ग विगई ॥ ५०६ ॥ दो छ सत्त अह य सत्तट्ठ य पंच छच्च पाणम्मि । चउ पंच अट्ठ नवए पत्ते पिंडए नवए ।। ५०७ ॥ दो चैव मुकारे आगारा छच्च पोरिसीए उ । सत्तेव य पुरिमढ्ढे एकासणगम्मि अट्ठेव ॥ ५०८ ॥ सत्तेकाणस्स उ अवायंबिलस्स आगारा । पंच अभन्तट्ठस्स उ छप्पाणे चरिम चत्तारि ।। ५०९ ॥ पंच चउरो अभिग्गह निधिइए अट्ठ नव य आगारा । अप्पावरणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥ ५१० ॥ raणीग्गा हिमए अद्दवदहि पिसिअ घय गुले चेव । नव आगारा तेसिं सेसदवाणं च अद्वेव ॥ ५११ ॥ वयभंगे गुरुद्रोसो थेवस्सवि पालणा गुणकरी अ । गुरुलाघवं च नेअं धम्मम्मि अओ उ आगारा ॥ ५१२ ॥ जहगहिअपालणंमी अपमाओ सेविओ धुवं होइ । सो तह सेविज्जंतो वडइ इअरं विणासेइ ॥ ५१३ ।। अथ अ माओ तत्तो मा होज कहवि भंगोन्ति । भंगे आणाईआ तओ अ सङ्घे अणस्थति ॥ ५१४ ॥ एवं माइणो कह पवज्जा होइ ? चरणपरिणामा । न य तस्सत्ताणंतरमेव पमाओ खयं जाइ ॥ ५१५ ॥ जमणा भवभत्थो तस्सेव खयत्थमुज्जएणेह । जहगहिअपालणेणं अपनाओ सेविअधोति ॥ ५१६ ॥ एवं सामइअं पहु सागारं निअमओ गहेयव्वं । सइ तम्मि निरागारे किंवा एएण कजंति ? ।। ५१७ ॥ For Private & Personal Use Only प्रत्याख्यानानि ॥ २६० ॥ jainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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