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________________ ROCACACADGAOACADEMOCROR एत्थ रसलोलुआए विगई न मुअइ दढोऽवि देहेणं । जो तं पइ पडिसेहो दट्टयो न पुण जो कजे ॥ ३८५॥ अभंगेण व सगडं न तरइ विगई विणाऽवि जो साहू । सो रागदोसरहिओ मत्ताएँ विहीऍ तं सेवे ॥३८६॥ पडपण्णऽणागए वा संजमजोगाण जेण परिहाणी। नवि जायइ तं जाणसु साहुस्स पमाणमाहारं ॥ ३८७ ॥ भुंजणत्ति दारं गयं ॥६॥ अह भुजिऊण पच्छा जोग्गा होऊण पत्तगे ताहे । जोग्गे धुवंति बाहिं सागरिए नवरमंतोऽवि ॥ ३८८॥ अच्छदवेणुवउत्ता निरवयवे दिति तेसु कप्पति। नाऊण व परिभोगं कप्पं ताहे पवडिंति ॥ ३८९॥ अंतो निरवयवि चिअ विअतिअकप्पेऽवि बाहि जइ पेहो । अवयवमंतजलेणं तेणेव करिजते कप्पे ॥३९०॥ पच्छन्ने भोत्तवं जइणा दाणाओं पडिनिअत्तेणं । तुच्छगजाइअदाणे बंधो इहरा पदोसाई ॥ ३९१ ॥ संवरणं तयणंतरमेक्कासणगेऽवि अप्पमायत्थं । आणाअणुहवसेअं आगारनिरोहओ अण्णं ।। ३९२ ॥ पत्तगधुवणत्ति दारं गयं ॥७॥ कालमकाले सण्णा कालो तइयाएँ सेसगमकालो। पढमापोरिसि आपुच्छ पाणगमपुल्फि अण्णदिसिं॥३९३॥ अइरेगगहण उग्गाहिएण आलोइअ पुच्छिउं गच्छे । एसा उ अकालंमी अणहिंडिअहिंडिआ काले ॥३९४॥ कप्पेऊणं पाए एकिकस्स उ दुवे पडिग्गहिए । दाउं दो दो गच्छे तिण्हट्ट दवं तु चित्तूणं ॥ ३९५ ॥ कप्पेऊणं पाए संघाडइलो उ एगु दोण्हपि । पाए धरेइ बिइओ वच्चइ एवं तु अण्णसमं ॥ ३९६॥ Jain Educat i onal For Private & Personel Use Only Mainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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