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श्रीपञ्चव.
१ प्रव्रज्या
सूत्रे
॥ २४७ ॥
संपाsिesवि अ तहा इमंमि सो होइ नत्थि एअंपि । अंगारमहगाई जेण पवजंतऽभवावि ॥ १६६ ॥ सह तंमि इमं विहलं असइ मुसावायमो गुरुस्सावि । तम्हा न जुत्तमेअं पबजाए विहाणं तु ॥ १६७ ॥ सचं खु जिणासो विरईपरिणामसो (मो) उ पवज्जा । एसो उ तस्सुवाओ पायं ता कीरइ इमं तु ॥ १६८ ॥ जिणपण्णत्तं लिंगं एसो उ विही इमस्स गहणंमि । पत्तो मपत्ति सम्मं चिंतेतस्सा तओ होइ ॥ १६९ ॥ लक्खिज्जइ कज्जेणं जम्हा तं पाविऊण सप्पुरिसा । नो सेवंति अकजं दीसइ थेवंपि पाएणं ॥ १७० ॥ आहच्चभावकहणं न य पायं जुज्जए इहं काउं । ववहारनिच्छ्या जं दोन्निऽवि सुन्ते समा भणिया ॥ १७१ ॥ जह जिणमयं पवजह ता मा ववहारणिच्छए मुअह । ववहारणउच्छेए तित्थुच्छेओ जओऽवस्सं ॥ १७२ ॥ ववहारपवत्तीइवि सुहपरिणामो तओ अ कम्मस्स । नियमेणमुवसमाई णिच्छयणयसम्मयं तत्तो ॥ १७३ ॥ होतेsवितम्मि विहलं न खलु इमं होइ एत्थऽणुडाणं । सेसाणुट्टापिव आणाआराहणाए उ ॥ १७४ ॥ असइ मुसाबाओsa अ ईसिंपिन जायए तहा गुरुणो । विहिकारगस्स आणाआराहणभावओ चेव ।। १७५ ।। होति गुणा निअमेणं आसंसाईहिं विप्यमुक्कस्स । परिणामविसुद्धीओ अजुत्तकारिंमिवि तयंमि ॥ १७६ ॥ तम्हा उ जुत्तमे पञ्चजाए विहाणकरणं तु । गुणभावओ अकरणे तित्थुच्छेआइआ दोसा ॥ ९७७ ॥ छउमत्थो परिणामं सम्मं नो मुणइ ताण देह तओ । न य अइसओ अ तीए विणा कहं धम्मचरणं तु १ ॥ १७८ ॥ आहचभावकहणं तंपि तप्पुत्रयं जिणा विंति । तयभावे ण य जुत्तं तयंपि एसो विही तेणं ॥ १७९ ॥
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२०२५
दीक्षाविधे
रावश्यक ता
॥ २४७ ॥
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