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श्रीपञ्चव. ५ वस्तुनि अभ्युद्यत
कन्दर्पभा
वना १६२८-३५
मरणे
॥२२९॥
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RIGANESHSAASAGAR
कंदप्पे कुक्कुइए दवसीले आवि हासणपरे अ। विम्हावितो अ परं कंदप्पं भावणं कुणइ ॥ १६३० ॥ परिदारगाहा ॥ कहकहकहस्सहसणं कंदप्पो अणिहुआ य संलावा। कंदप्पकहाकहणं कंदप्पुवएस संसा य ॥ १६३१ ॥ दारं ॥ भमुहणयणाइएहिं वयणेहि अ तेहिं तेहिं तह चिटुं।
कुणइ जह कुकुअं चिअ हसइ परो अप्पणा अहसं ॥ १६३२ ॥ दारं ॥ भासइ दुअंदुअंगच्छई अदपिअव गोविसो सरए।सबदवदवकारी फुटइव ठिओवि दप्पेणं॥१६३३॥दा.
वेसवयणेहि हासं जणयंतो अप्पणो परेसिं च। अह हासणोत्ति भण्णइ घयणोच छले णिअच्छंतो ॥ १६३४॥ सुरजालमाइएहिं तु विम्हयं कुणइ तविहजणस्स । तेसु ण विम्हयइ सयं आहट्टकुहेडएसुं च ॥ १६३५॥ दारं ॥
॥२२९॥
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