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________________ श्रीपञ्चव. अनुयोगास्तवपरि ज्ञायां ॥ १९२॥ Jain Education तथा पात्रे न लघुत्वदोषा अपीति गाथार्थः ॥ ३४ ॥ जातसमाप्तविभाषा बहुतरदोषात् कारणादासां कर्त्तव्या, व्रतवतीनां सूत्रानुसारतः खल्वधिकादि- द्विगुणादिरूपा, कृतं प्रसङ्गेन । प्रकृतं प्रस्तुमः इति गाथार्थः ॥ ३५ ॥ एत्थाऽणुजाणणविही सीसं काऊण वामपासम्मि । देवे वंदेइ गुरू सीसो वंदित तो भइ ॥ १३३६ ॥ | इच्छाकारेणऽम्हं दिसाइ अणुजाणहत्ति आयरिओ । इच्छामोत्ति भणित्ता उस्सग्गं कुणइ उ तयत्थं १३३७॥ चउवी सत्थय नवकार पारणं कड्डिउं थयं ताहे । नवकारपुवयं चिअ कड्डेइ अणुवणणंदिन्ति ॥ १३३८ ॥ सीसोऽवि भाविअप्पा सुणेड़ जह वंदिउं पुणो भणइ | इच्छाकारेणऽम्हं दिसाइ अणुजाणह तहेव ॥१३३९॥ आह गुरू खमासमणाणं हत्थेणिमस्स साहुस्स । अणुजाणिअं दिलाइ सीसो वंदित तो भणइ ॥ १३४० ॥ संदिसह किं भणामो वंदितु पवेअहा गुरू भणइ । वंदित्तु पवेअयई भणइ गुरू तत्थ विहिणा उ ॥ १३४१ ॥ वंदित तओ तुब्भं पवेइअं संदिसहत्ति साहूणं । पवेएमि भणइ सीसो गुरुराह पवेअय तओ उ ॥ १३४२ ॥ वंदित णमोक्कारं कडुंतो से गुरुं पयक्खिणइ । सोऽवि अ देवाईणं वासे दाऊण तो पच्छा ॥ १३४३ ॥ सीसम्म पक्खिवंतो भण्णइ तं गुरुगुणेहिं वड्ढाहि । एवं तु तिष्णि वारा उवविसइ तओ गुरू पच्छा१३४४ ॥ | सेसं जड़ सामइए दिसाइअणुजाणणाणिमित्तं तु । णवरं इह उस्सग्गो उवविसइ तओ गुरुसमीवे ॥ १३४५॥ tional For Private & Personal Use Only -∞∞∞ ***% प्रतिन्याः स्वलब्धिः पददानविधिः ॥ १९२ ॥ ainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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