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________________ प्रस्तावना । नन्दिसूत्रम् । ॥४२॥ गाथाओ तेमां नथी. अवचूरिना अनुक्रमे १८, १९, ३१, ३२, ४४,४५, ४८ तेमांनी ३१ अने ३२ ने छोडीने जेम | पू. मलयगिरि मनी टीकामां व्याख्या करवामां आवी नथी तेम अहीं पण ते बाकीनी ६ गोथानी व्याख्या कर- वामां आवी नथी. आ २ गाथाओ मुद्रितचूर्णिमां पण पाठान्तर तरीके छे. तेमज पू. हरिभद्र सू. म.नी टीकामां पण लेवामां आवी नथी. जे बिलकुल सामान्य अवचूरि आ बे गाथाओ पर जोवामां आवे छे. ते कदाच कोइके पाछळथी हाथे लखी लीधी होय तेभ जणाय छे. एम लागे छे के मुद्रित नंदीनी पू. मलयगिरि मनी टीकानो तेमज आ संक्षिप्तीकरणनो आदर्श जुदो जुदो होवो जोइए. आम प्रत्येक शब्दे शब्दे तो पू . मलयगिरि मनी टीका साथे मेळवेल नथी. पण जेटलो भाग मेळव्यो छे तेमां एक पण शब्दनो फरक जणातो नथी. माटे आनुं नाम अमे संक्षिप्त मलयगिरि टीका आपेल छे. जेने वधु विस्तार पसंद नथी तेने आ ग्रन्थ अचूक लाभदायक निवडशे. जैन ग्रंथावली पृ. ४२ना टीप्पणमा लखेल छ के चंचलबाना भंडारमा रहेली आ अवचूरिना कर्ता देव्यावसूरि छे तेम ते आदर्शना टीप्पणमा जणाव्युं छे. पण उपर जणाव्या मुजब तेओ संक्षिप्तीकरणना कर्ता छे अने देव्यावसूरि एवं नाम कोइ लहीयानी अशुद्धिना कारणे लखाइ गयु होय तेम जणाय छे. कदाच तेमनुं नाम देवसूरि हशे. आ ग्रन्थनी श्लोक संख्या १६०५ छे. अंतमा प्रस्तावनाना आलेखनमा तेमज ग्रन्थना संपादनकार्यमा अने टीप्पणी आलेखनमा आभोग के अनाभोगथी जिनाज्ञा विरुद्ध जो कंइ पण थवा पाम्युं होय तो ते बाबतमा 'मिच्छामि दुक्कडम् ' अपार्थिवज्योतिर्धर व्याख्यानवाचस्पति स्व. परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयलब्धिसूरीश्वरजी महाराजनो चरणकिंकर आचार्य विक्रमसूरि ॥४२॥ For Private & Personal Use Only ww.ainelibrary.org Jan Education in
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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