________________
प्रस्तावना।
नन्दिसूत्रम्।
॥३७॥
| कभी भी, कहीं भी, किसी भी, व्यक्ति के हाथों में आ सकता है। और कोई भी उसे पढ सकता है। मेरे विचार | में तत्कालीन लेखन और अद्यतन मुद्रण की स्थिति में कोई विशेष अन्तर नहीं है।" [पृ. ४ निशीथसूत्र पीठिका] ____आम उपाध्याय अने मुनिजीए ने लख्यु ते क्यां सुधी शास्त्रानुसार छे ते विचारीए. एमणे जे निशीथसूत्रनी पीठिका छपावी छे. ते पीठिकानी रचना लेखनकाल शरु थया पछीनी छे. छतां एमां अधिकारनी वात करी छे. अन्य सूत्रो अने छेदसूत्रो आ बेमां एटलो बधो फरक छे के एक औत्सर्गिक छे ज्यारे छेदसूत्रो आपवादिक छे. महाव्रतोमा अपवादनु विधान करनार छेदसूत्रो छे. आनो अभ्यास जे ते करी न शके. आवी सघळीए वातो ग्रन्थकारे करी छे. अन्य सूत्रोमां अधिकारी होवा छतां ते साधु छेदसूत्रोनो अधिकारी बनी शकतो नथी. अन्यसूत्रो तो योगोद्वहन | विनाना साधुओ श्रवण करता होवा छतां पण निशीथमत्र तो अन्य साधुओ श्रवण न करे तेनी तकेदारी ज्ञानदाताए राखवी तेवी आज्ञा तेमां ज फरमावी छे.
चोदगाह - जइ कम्मकखवणसामत्थाओ इमं णिसीह एवं सव्वज्झयणाणं णिसीहत्तं भवतु ?
गुरू भणति - आमं, कि पुण “ अविसेसे वि ति सव्वज्झयण-कम्मक्खवणस सामत्थाविसेसा इह अज्झयणे विसेसो। विसेसो णाम भेओ। को पुण विसेसो ? इमो सुति पिजणेति अण्णेसि । सुति सवणं सोइंदिउवलद्धी जम्हा कारणा, ण इति पडिसेहे, एति आगच्छति प्राप्नोतीत्यर्थः, अण्णेसिति अगीतअइपरिणामापरिणामगाणं ति वक्कसेसं । कि पुण कारणं नेसिमं सुई णागच्छति ? सुण-इदमज्झयणं अववायबहुल', ते य अगीयत्यादि-IN
॥३७॥
For Private Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org