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प्रस्तावना।
नन्दिसूत्रम् ।
॥२८॥
परोक्षज्ञान [२] श्रुत परोक्षज्ञान. त्यारबाद जणावे छे के ज्यां आभिनिबोधिकज्ञान छे त्यां श्रुतज्ञान छे अने ज्यां श्रुतज्ञान छे त्यां आभिनिवोधिक ज्ञान छे. आम अन्योन्यानुगत होवा छतां पण आचार्यों द्वारा प्ररूपायेल भेद व्युत्पत्ति द्वारा दर्शावे छे. त्याबाद भेदने वधु स्पष्ट करतां कहे छ के श्रुतज्ञान मतिपूर्वक छ पण श्रुतपूर्वक मति नथी. अहीं वधु स्पष्टता करता टीकाकारो विशेषावश्यक भाष्य अनुसार ते वातने वधु स्पष्ट करे छे. त्यारवाद सम्यग्दृष्टिनी मति ते मतिज्ञान छे अने मिथ्यादृष्टिनी मति ते मतिअज्ञान छे. तेवीज रीते सम्यग्दृष्टिनु श्रुत ते श्रुतज्ञान छे, अने मिथ्यादृष्टिनु श्रुत ते श्रुतअज्ञान छे तेम जणावे छे. आम ते बन्नेनु' कथन सामान्य आभिनिबोधिकपरोक्षज्ञानना बे भेद दर्शावे छे.
आभिनिवोधिक परोक्षज्ञान के प्रकारे छे:
१. श्रुतनिश्रित २. अश्रुतनिश्रित. तेमां द्वितीय भेदमां अल्प वक्तव्य होवाथी ते अश्रुतनिश्रितना भेद प्रथम बतावे छे. १. औत्पत्तिकी २. वैनियकी ३. कामिकी ४. पारिणामिकी. तेमां प्रथम औत्पातिकीमतिनु लक्षण बतावी घणा रमुजी एवा २३ दृष्टांत आप्या छे. पछी वैनयिकी बुद्धिनु लक्षण देखाडवापूर्वक १५ दृष्टान्त मूकवामां आव्या छे. ते पछी कार्मिकी बुद्धिनु लक्षण १२ दृष्टांतपूर्वक निरूपण करवामां आव्युं छे. ते ज प्रमाणे अनेक तिहासिक पुरुषोना दाखला सहित अने लक्षणपूर्वक पारिणामिकी बुद्धीनुं निरूपण करवामां आव्युं छे. जेमां अभयकुमार, चाणाक्य, स्थूलभद्र, वज्रस्वामी आदि २१ दृष्टांत छे. पछी श्रुतनिश्रितना अवग्रहादि भेदो स्पष्ट कर्या छे. ते पछी ते बधानो परिचय आपवा साथे भेद दर्शाच्या छे. साथे साथे अवग्रह आदिना एकार्थको (पर्याय शब्दो) गणाव्या छे.
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